सहस्रबाहु का अर्थ
शाब्दिक अर्थ : एक हजार बाहों वाला
सहस्रबाहु के कई नाम
चन्द्र वंश के महाराजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्तवीर्य-अर्जुन कहा जाता है। उनका जन्म नाम एकवीर तथा सहस्रार्जुन भी है। पौराणिक ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार कार्तवीर्य अर्जुन के हैहयाधिपति, सहस्रार्जुन, दषग्रीविजयी, सुदशेन, चक्रावतार, सप्तद्रवीपाधि, कृतवीर्यनंदन, राजेश्वर आदि कई नाम होने का वर्णन मिलता है।
- अर्जुन
- मूल नाम
- कार्तवीर्य/कार्तवीर्य अर्जुन
- राजा कृतवीर्य के पुत्र
- सहस्रबाहु/सहस्रबाहु अर्जुन/सहस्रार्जुन
- सहस्र (हजार ) हाथों के वरदान के कारण
- हैहय वंशाधिपती
- हैहय वंश में श्रेष्ठ राजा होने के कारण
- माहिष्मति नरेश
- माहिष्मति नगरी के राजा
- सप्त द्वीपेश्वर
- सातों महाद्वीपों के राजा होने के कारण
- दशग्रीव जयी
- रावण को हराने के कारण
- राज राजेश्वर
- राजाओं के राजा होने के कारण
सहस्रबाहु अर्जुन का इतिहास
कार्तवीर्य अर्जुन प्राचीन हैहय वंश के राजा थे जिनका उल्लेख महाभारत में भी है। वे प्राचीन माहिष्मति नगरी के राजा थे । वही महिष्मती जिसे आज महेश्वर के नाम से जाना जाता है। वर्तमान महेश्वर नगर मध्य प्रदेश में है।
वे चंद्रवंशी राजा कृतवीर्य के पुत्र थे। राजा अर्जुन की राजधानी नर्मदा नदी के तट पर थी जिसे इन्होंने कार्कोटक नाग से जीतकर बसाया था।
सहस्रबाहु राजराजेश्वर मंदिर
राजराजेश्वर मंदिर में युगों-युगों से देसी घी के ग्यारह नंदा दीपक अखण्ड रूप से प्रज्वलित हैं| सहस्रबाहु कर्तावीर अर्जुन की जयंती महेश्वर में एक बड़ा त्योहार है और यह अगहन माह की शुक्ल सप्तमी को मनाया जाता है। यह उत्सव तीन दिनों तक जारी रहता है, और सभी के लिए एक बड़े भंडारा के साथ समाप्त होता है ।
सहस्रबाहु समाधि
राजराजेश्वर मंदिर के बीच में शिवलिंग के रूप मेंराजराजेश्वर सहस्रबाहु की समाधी है । आज भी उनकी समाधी स्थल में उनकी देवतुल्य पूजा होती है उन्ही के जन्म कथा के महात्म्य के सम्बन्ध में मतस्य पुराण के 43 वें अध्याय के श्रलोक 52 की पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं :
यस्तस्य कीर्तेनाम कल्यमुत्थाय मानवः I
न तस्य वित्तनाराः स्यन्नाष्ट च लभते पुनः I
कार्तवीर्यस्य यो जन्म कथयेदित धीमतः II
यथावत स्विष्टपूतात्मा स्वर्गलोके महितये II
उक्त श्लोक का अर्थ है कि जो प्राणी सुबह-सुबह उठकर श्री कार्तवीर्य सह्स्त्राबहुअर्जुन का स्मरण करता है उसके धन का कभी नाश नहीं होता है और यदि कभी नष्ट हो भी जाय तो पुनः प्राप्त हो जाता है I इसी प्रकार जो लोग श्री कार्तवीर्य सह्स्त्राबहुअर्जुन के जन्म वृतांत की कथा की महिमा का वर्णन कहते और सुनाते है उनकी जीवन और आत्मा यथार्थ रूप से पवित्र हो जाति है वह स्वर्गलोक में प्रशंसित होता है I
सहस्रबाहु जयंती
भागवत पुराण में भगवान विष्णु व लक्ष्मी द्वारा सहस्रबाहु महाराज की उत्पत्ति की जन्मकथा का वर्णन है। उनका जन्म महाराज हैहय की 10वीं पीढ़ी में माता पद्मिनी के गर्भ से हुआ था। सहस्रार्जुन जयंती क्षत्रिय धर्म की रक्षा एवं सामाजिक उत्थान के लिए मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार प्रतिवर्ष सहस्रबाहु जयंती कार्तिक शुक्ल सप्तमी को दीपावली के ठीक बाद मनाई जाती है।
जिस भक्त का सर झुके , सहस्रबाहु के आगे !! सारी दुनिया झुकती है ,उस इंसान के आगे !! सुबह शाम भजन करले ,मुक्ति का यतन कर ले !! छुट जायेगा जन्म -मरन , सहस्रबाहु का सुमिरन कर ले !! सहस्रबाहु जी की कृपा सभी पर निरंतर बनी र !! अनंत कोटी ब्रम्हांड नायक राजा धिराज योगिराज परब्रम्ह श्री सचिदानंद सदगुरु सह स्र र्जुन महाराज की जय !! ॐ सहस्रबाहु नमो नम: जय जय कार्तवीर्यार्जुनाय नमो नम: ॐ सह स्र स्त्रार्जुनाय नमो नम: ॐ जय जय कार्तवीर्यार्जुनाय नमो नम: