श्री बलभद्र चालीसा
दोहा:
देव पद सरन शरण मैं आऊं, रोहिणी नंदन गुण गाऊं।
कृष्ण भ्राता बल के सागर, दीन बंधु, कृपा के आगार।।
चौपाई:
जय बलभद्र महाबलशाली। कृष्ण भ्राता, करुणा की लाली।।
रोहिणी नंदन, ब्रज के तारे। त्रिभुवन में गूंजे तुमरे जयकारे।।
द्वारका में बलभद्र सदा विराजें। पूजें भक्तन, प्रेम के साजे।।
जगन्नाथ संग पुरी में रहते। सुभद्रा कृष्ण संग भक्तों को भाते।।
गुजरात में सोमनाथ धाम। जहां बसते बलभद्र महान।।
मथुरा नगरी जन्म स्थल पावन। हर भक्त का कर देते कल्याण ।।
कलवार हृदय बलभद्र बसे। भक्तन के कष्ट सदा वो हरें।।
पुरी के रथ उत्सव में आते। जगत कल्याण संग जगन्नाथ करते ।।
गोकुल, वृंदावन में गाते। तुम्हारे जयकारे भक्त लगाते।।
हलधर नाम से पूजित हो। त्रिभुवन में तुमसे सुखित हो।।
धेनुक मार, प्रलंब संहारा। असुरों का गर्व मिटाया सारा।।
गदा युद्ध के ज्ञानी बलराम। तुमसे बढ़े सदा धर्म का नाम।।
कृष्ण के संग लीलाएं रचाईं। यमुना तट पर कथा सुनाई।।
कृष्ण की संगिनी रक्षा करते। हर पथ पर धर्म सिखाते।।
हर मंदिर में गूंजे नाम। जय हो हलधर, जय बलराम।
पग-पग पर रक्षा करो, बल देकर हे बलभद्र हे बलराम।।
दोहा :
बलभद्र चालीसा जो गावे। भक्तन को सुख-शांति पावे।।
द्वारका, पुरी, मथुरा धाम। जहां पूजें भक्त, जय बलराम।।
- मनोज कुमार शाह – तिनसुकिया द्वारा रचित