अंत्येष्टि और श्राद्ध जैसी प्रथाओं के संदर्भ में विचार करते हुए, मैं मनोज कुमार शाह अपना कुछ सुझाव व्यक्तिगत रूप से दे रहा हूँ, कृपया आप भी अपने विचार दे सकते हैं :
- शिक्षा और जागरूकता: समाज में शास्त्रीय मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों की सही जानकारी फैलाने के लिए शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं। लोगों को समझाया जा सकता है कि अंत्येष्टि क्रिया के बाद कोई और संस्कार नहीं होता है।
- संवाद और चर्चा: सामुदायिक चर्चाओं और सेमिनारों का आयोजन किया जाए, जिसमें समाज के वरिष्ठ और शिक्षित लोग इस विषय पर अपने विचार साझा करें। इससे लोगों में जागरूकता बढ़ेगी और पुरानी प्रथाओं पर विचार विमर्श होगा।
- आर्य समाज का योगदान: आर्य समाज जैसे संगठनों को आगे आकर इस विषय पर सक्रिय रूप से चर्चा करनी चाहिए और समाज को सही मार्गदर्शन देना चाहिए। उनके माध्यम से लोग सही धार्मिक विचारों से अवगत हो सकते हैं।
- समाज के सभी वर्गों की भागीदारी: समाज के विभिन्न वर्गों (युवा, बुजुर्ग, महिलाएँ) को इस सुधार प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए। इससे विचारों में विविधता आएगी और अधिक प्रभावी समाधान निकाले जा सकेंगे।
- नए संस्कारों का निर्माण: अगर समाज में किसी प्रथा का स्थानांतरण करना है, तो उसके लिए नए संस्कारों और परंपराओं का निर्माण किया जा सकता है जो शास्त्रों के अनुसार हों और समाज में एकता और प्रेम को बढ़ावा दें।
- धार्मिक नेताओं की भूमिका: धार्मिक नेताओं को इस विषय पर स्पष्टता और समझदारी के साथ लोगों को मार्गदर्शन देना चाहिए, ताकि लोग धार्मिक प्रथाओं को समझ सकें और उन्हें अपनाने का सही तरीका जान सकें।
- सकारात्मक दृष्टिकोण: बदलाव के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण और समाधान पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। लोगों को यह समझाना होगा कि बदलाव का उद्देश्य समाज की भलाई और एकता है।
- सादगी एवं कमखर्च को अपनाना और फिजूल या बिना जरूरत के खर्च से बचन होगा , समाज को भी बचना होगा ।
इस प्रकार, समाज में सुधार लाने के लिए शिक्षा, संवाद, और सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं।