विश्व में भारत का सम्मान बढ़ाने वाले महान विचारक काशीप्रसाद

धन्य है उत्तर प्रदेश का जिला मिर्जापुर जिसकी मिट्टी में डॉक्टर फरशीप्रसाद जैसी महान विभूति ने जन्म लेकर देश की रूपति और गंगा-जमुनी संस्कृति को विश्व पटल पर नई ऊंचाइयां प्रदान की थी, जिसकी वजह से सम्पूर्ण मानव जाति को गौरव प्रदान हुआ। ऐसे महान विचारक लेखक और अर्थशास्त्री डॉक्टर काशीप्रसाद का जन्म 27 नवंबर 1881 को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक धनी परिवार में हुआ था। डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल मिर्जापुर के प्रसिद्ध रईस साहु महादेव प्रसाद जायसवाल के पुत्र थे। काशी प्रसाद का जीवनकाल बहुम लंबा नहीं रहा और मात्र 56 साल की उम्र में 04 अगस्त 1937 को काशी प्रसाद की मृत्यु हो गई थी। बीसवीं सदी में जिन भारतीय विद्वानों ने विमर्श की दिशा को प्रभावित करने में अग्रणी भूमिका निभाई, उनमें काशीप्रसाद जायसवाल (1881 1937) अग्रगणी हैं। उनके जीवन के कई आयाम है और कई क्षेत्रों में उनका असर रहा है।

अपने छोटे से जीवनकाल में डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल बड़ी ऊंचाई हासिल की जायसवाल के जीवन दर्शन को लेकर उनके शिष्यों मित्रों की न केवल अनेक संकलित रचनाएं प्रकाशित हुई, बल्कि उन पर न जाने कितने शोध-प्रबंध और किताब और लेख लिखे गए । अनगिनत सभाएं संगोष्ठी कार्यक्रम बदस्तूर जारी है। जायसवाल युग-निर्माताओं में से एक थे और अपने कृतित्व के आधार पर आज भी बेजोड़ हैं। इतिहास उनके कार्यों की समीक्षा और पुनर्पाठ तो करेगा ही, लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि ज्ञान की दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त काशीप्रसाद जायसवाल का क्या हुआ ? क्या वे फुट नोट्स और इतिहास के पत्रों में दवा दिए गए ? क्या इतिहास और साहित्य के मठाधीशों ने जायसवाल के मामले में कोई सामाजिक लीला की है ? यह सवाल तो बनता है। काशीप्रसाद ने देश और समाज को जो दिया वह विरले ही दे पाते हैं, लेकिन इनके बदले में उन्हें यह सम्मान मिला, जिसके वह हकदार थे ? यह एक प्रश्न है, इसीलिए तमाम बुद्धिजीवी और जायसवाल समाज लगातार काशी प्रसाद को भारत रत्न दिए जाने की मांग कर रहा है।

तमाम विद्याओं में निपुण डॉक्टर काशीप्रसाद जायसवाल सामाजिक रूप से हिन्दू मुस्लिम एकता को जरूरी समझते थे। उनका मत था कि ताली एक हाथ से नहीं, बल्कि दोनों हाथ से बजती है। क्योंकि अधिकांश हिन्दू साहित्यकार अपने उपन्यासों में मुसलमानों को अत्याचारी और हिन्दुओं को सदाचारी के रूप में चित्रित कर रहे थे, इसलिए काशीप्रसाद इस कृत्य को राष्ट्रीय एकता बाधक के रूप में देख रहे थे। काशीप्रसाद के व्यक्तित्व की व्याख्या उनके संबंथियों, मित्रों, विरोधियों और विद्वानों ने अपने-अपने हिसाब की की थी। कोई उन्हें घमंडाचार्य और बेरिस्टर साहब (महावीरप्रसाद द्विवेदी) तो कोई कोटाधीश (रामचंद्र शुक्ल), सोशल रिफॉर्मर (डॉ. राजेन्द्र प्रसाद), डेंजरस रेवोलुशनरी और तत्कालीन भारत का सबसे क्लेवरेस्ट इंडियन (अंग्रेज शासक) जयसवाल द इंटरनेशनल (पी. सी. मानुक) विद्यमाहोदधि (मोहनलाल महतो वियोगी) और पुण्यश्लोक (रामधारी सिंह दिनकर) की उपमा से सुशोभित करता था।

काशीप्रसाद जी की आरंभिक शिक्षा मिर्जापुर फिर बनारस और इंग्लैंड में (1906-10) हुई। इंग्लैंड में अपने अध्ययन के दौरान उन्होंने तीन डिग्रियां प्राप्त की। इसमें लॉ और इतिहास (एम.ए.) के अलावा चीनी भाषा की डिग्री शामिल थी। जायसवाल पहले भारतीय थे, जिन्हें चीनी भाषा सीखने के लिए 1,500 रुपए की डेविस स्कालरशिप मिली। काशीप्रसाद जी की सफलता के संबंध में महावीरप्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती में कई संपादकीय टिप्पणियों और लेख लिखे। इंग्लैंड में काशीप्रसाद का संपर्क वी. डी. सावरकर, लाल हरदयाल जैसे क्रांतिकारियों से हो गया था, जिसकी वजह से वे औपनिवेशिक पुलिस की नजर में चढ़े रहे। गिरफ्तारी की आशंका को देखते हुए काशीप्रसाद जल-थल-रेल मार्ग से यात्रा करते हुए 1910 में भारत लौटे। वे पहले कलकता में बसे और फिर 1912 में बिहार बनने के बाद 1914 में हमेशा के लिए पटना प्रवास कर गए उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में आजीवन वकालत की । वे इनकम टैक्स के प्रसिद्ध वकील माने जाते थे । दरभंगा और हथुआ महाराज जैसे लोग उनके मुवक्किल थे, और बड़े-बड़े मुकदमों में काशीप्रसाद प्रिवी कोसित बहस करने इंग्लैंड भी जाया करते थे।

काशीप्रसाद कई भाषाओं के जानकार थे। वह संस्कृत, हिंदी इंग्लिश चीनी, फ्रेंच, जर्मन और बांग्ला भाषा पर पूरा कमांड रखते थे। लेकिन अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार ये हिंदी और अंग्रेजी में ही लिखते थे । अंग्रेजी बाह्य जगत के पाठकों और प्रोफेशनल इतिहासकारों के लिए तथा हिंदी स्थानीय पाठक और साहित्यकारों के लिए । काशीप्रसाद ने लेखन से लेकर संस्थाओं के निर्माण में कई कीर्तिमान स्थापित किए। दर्जनभर शोष-पुस्तकें लिखी और सम्पादित की, जिसमें हिन्दू पॉलिटी, मनु एंड याज्ञवल्क्य, हिस्ट्री ऑफ इंडिया (150-350। क ) बहुचर्चित रचनाएं हैं।

काशीप्रसाद ने हिंदी भाषा और साहित्य तथा प्राचीन भारत के इतिहास और संस्कृति पर तकरीबन दो सौ मौलिक लेख लिखे जो प्रदीप, सरस्वती, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, जर्नल ऑफ विहार एंड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, इंडियन एंटीक्वेरी, द मॉडर्न रिव्यू, एपिग्रिफिया इंडिका, जर्नल ऑफ द रॉल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड, एनाल्स ऑफ भंडारकर (ओरिएण्टल रिसर्च इंस्टिट्यूट), जर्नल ऑफ द इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट, द जैन एंटीक्वेरी इत्यादि में प्रकाशित है।

जायसवाल ने मिपुर से प्रकाशित कलवार गजट (मासिक, 1906) और पटना से प्रकाशित पाटलिपुत्र (1914-15) पत्रिका का संपादन भी किया और जल ऑफ बिहार एंड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी के संपादक भी रहे। इसके अलावा अपने जीवन काल में कई महत्वपूर्ण व्याख्यान दिए, जिनमें टैगोर लेक्चर सीरीज (कलकता, 1919), ओरिएंटल (पटना/बड़ोदा 1930/ 1933), रॉक्ल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन (1936, पहले भारतीय, जिन्हें यह अवसर मिला), अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मलेन, इंदौर (1935) इत्यादि महत्वपूर्ण है। नागरी प्रचारिणी सभा, बिहार एंड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, पटना म्यूजियम और पटना विश्वविद्यालय जैसे महत्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना से लेकर संचालन तक में जायसवाल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

डॉक्टर काशीप्रसाद जायसवाल जी पाटलिपुत्र पत्र के संपादक भी रहे, बिहार एंड रिसर्च सोसायटी के अनक, निबंधकार, विचारक, हिंदू पालिटी (एकांस्टीट्यूशन हिस्ट्री ऑफ इंडिया इन हिंदू टाइम्स), मनु और याज्ञवल्क्य एन इंपीरियल हिस्ट्री ऑफ इंडिया (फ्रॉम 700 बोसी टू 770 एडी). ए. क्रोनोलॉजी एंड हिस्ट्री ऑफ नेपाल, हिस्ट्री ऑफ इंडिया (150 एडी टू 350 एडी) के लेखक, आलोचक विचारक, काशीप्रसाद का जीवन और व्यक्तित्व देशभक्ति की भावनाओं से रंगा-भरा हुआ था। अंग्रेज लोग महान काशीप्रसाद जायसवाल को क्लेयरेस्ट इंडियन मानते थे और उनको डेंजरस रिवॉल्यूशनरी कहते थे।

भारतीय दर्शन, इतिहास, भाषा साहित्य, सभ्यता-संस्कृति व धर्म के गौरवशाली अतीत को काशप्रसाद ने जिस प्रखरता से उभारा है, उस तरह की प्रखरता अभी तक कोई दूसरा साहित्यकार या इतिहासकार नहीं कर पाया है। शायद, इसलिए ज्ञानपीठ साहित्य अकादमी व पदभूषण से सम्मानित राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपने संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ नामक पुस्तक में लिखा है कि सूर्य, चंद्र, वरुण, कुबेर, बृहस्पति भी डॉक्टर काशीप्रसाद जायसवाल जी की बराबरी नहीं कर सकते। एक अन्य साहित्य अकादमी तथा पद्मभूषण से विभूषित प्रख्यात साहित्यकार डॉ. अमृतलाल नागर ने तो यहां तक कहा है कि अगर उन्हें चंद घड़ी के लिए हिंदुस्तान का बादशाहत मिल जाए तो वे हिन्दुस्तान की तकदीर बदल सकते हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया के 31 अगस्त, 1960 के अंक में प्रकाशित एक समाचार से यह भी पता चलता है कि भारत सरकार ने सन 1961 में कुछ विशिष्ट महापुरुषों के सम्मान में विशेष डाक टिकटों को जारी करने का निर्णय लिया है। उन महापुरुषों में एक नाम प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल का भी था। प्रसिद्ध उपन्यासकार अमृतलाल नागर ने कहा है कि यदि मुझे पीर मोहम्मद चिश्ती की भांति तीन घंटे की बादशाहत मिल जाए तो में गांव-गांव के मंदिरों में डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल की मूर्तियां स्थापित करने का आदेश प्रसारित कर दूँ |

शख्सियत : द्वारा : अजय कुमार : प्रकाशक : दैनिक पूर्वोदय 12/12/21

संपादक Manoj Kumar Shah

इस पोस्ट को अपने समाजबंधु के साथ जरूर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

समाजबंधु के सदस्य बने
X
अब आप समाजबंधु के सदस्य भी बन सकते हैं
हम 24 घंटे के भीतर आपको जवाब देने की पूरी कोशिश करेंगे
<
संपादक बने
भाव-विचार और अनुभवों के आदान-प्रदान से सामाजिकता की भावना का संचार होता है।
>
क्या आप समाजबंधु संपादक बनना चाहते हैं ?
वैवाहिकी सदस्य बने
यह कलवार | कलार | कलाल समाज के लडकों और लड़कीयो के रिश्ते तय करने में सहयोग हेतु बनाया गया है।
>
नमस्ते,
समाजबंधु विवाह मॅट्रिमोनी में आपका स्वागत है।
धन्यवाद।
मनोज कुमार शाह