भगवान बलभद्र जी का “भद्रराज मंदिर”जहां हर याचक की मनोकामना पूरी होती है ।

यह बलभद्र जी को समर्पित मंदिर उत्तराखंड राज्य के मसूरी शहर से करीबन 15 किलोमीटर की दूरी पर ऊंचे पहाड़ पर स्थापित है । स्थानीय भाषा के में बलभद्र जी को लोग ‘भद्रराज जी’ कहते हैं। अतः मंदिर को “भद्रराज मंदिर” कहा जाता है। इस मन्दिर में भगवान बलभद्र, उनके छोटे भ्राता श्री कृष्ण, बहन सुभद्रा की मूर्ति है, इस मूर्ति के चारों तरफ स्थानीय लोगों द्वार सुंदर नक्काशी की गई है जो की इस मंदिर की सुंदरता को चारचाँद लगा देती है ।


यहाँ की मान्यता है कि सतयुग में भगवान बलराम यहां साधू के भेष में आये थे। उस समय यहां लोगों के पशुओं को गंम्भीर बीमारी के कारण काफी हानी हो गई थी । यहां के लोगों दुखी मन से बलराम जी के सरण में गए और अपना दुख उन्हे सुनाया, तब भगवान बलभद्र जी ने उन्हे उपाय बताए और साथ ही साथ आशीर्वाद भी दिया, उनके आशीर्वाद से सारे पशु ठीक हो गये। पूरा गाँव दूध और मक्खन से परिपूर्ण हो गया ।
कुछ समय बाद जब बलराम जी उस स्थान को छोड़ कर भगवान श्री केदार नाथ की तरफ जाने की बात वहाँ के लोगों को बताई। लोगों ने उनसे यहां से न जाने की प्रार्थना की, तब बलराम जी मान गये और इसी स्थान पर रहने का निर्णय लिया। उन्होने समझाया कि वे अब यहीं मूर्ति स्वरूप रहेंगे तथा बताया कि कलयुग में उनकी पूजा “भद्राज’ के नाम से मूर्ति के रूप से होगी ।
लोककथाओं के अनुसार कलयुग काल में ‘नंन्दू मेहर‘ नाम का एक व्यक्ति उनकी स्थापना स्थापित किया था। नंन्दू मेहर के नाम पर यहाँ एक झोपड़ी बनायी है जो “सत्योंथात” के नाम से आज भी प्रसिद्ध है।
वर्तमान में इस मंदिर को पत्थरों द्वारा भव्य स्वरूप में बनवाया गया है, चारों तरफ पहाड़ी और प्रकृतिक दृश्य देखने योग्य है । संक्राति और 16 या 17 अगस्त को लगने वाले मेले को यहाँ एक मेला भी लगता है इस मेले को भद्राज मेंले के नाम से जाना जाता है। इसे देखने और भगवान बलभद्र जी को दूध से अभिषेख करने के लिये लोग दूर दराज के क्षेत्रों और देश-विदेश से भी आतें है। इस सिद्धपीठ में साफ मन से आने वाले व्यक्ति को भगवान भद्राज अवश्य ही वर देते है।


भगवान भद्राज मंदिर में लगने वाले भोगों में दूध, दही, मक्खन, आटे का रोट आदि प्रमुख है। इस मंदिर में आने वाले सभी भक्तों को स्वच्छ तन और मन से आना चाहिए। मंदिर में सभी प्रकार के मादक पदार्थ व मांस, मछली पूर्ण तरह से वर्जित है। जो कोई भी इन पदार्थों के साथ यहां जाता है वह भगवान उसे तुरन्तु दण्ड दे देते है।

भद्राज मंदिर कैसे पंहुचे – भद्राज मंदिर पहुचंने के लिए मसूरी से दूधली (10-15 किलोमीटर की दूरी) तय करनी पड़ती है, सहसपुर-लांधा मदोगी तक (5-7 किलोमीटर)।

संपादक Manoj Kumar Shah

इस पोस्ट को अपने समाजबंधु के साथ जरूर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

समाजबंधु के सदस्य बने
X
अब आप समाजबंधु के सदस्य भी बन सकते हैं
हम 24 घंटे के भीतर आपको जवाब देने की पूरी कोशिश करेंगे
<
संपादक बने
भाव-विचार और अनुभवों के आदान-प्रदान से सामाजिकता की भावना का संचार होता है।
>
क्या आप समाजबंधु संपादक बनना चाहते हैं ?
वैवाहिकी सदस्य बने
यह कलवार | कलार | कलाल समाज के लडकों और लड़कीयो के रिश्ते तय करने में सहयोग हेतु बनाया गया है।
>
नमस्ते,
समाजबंधु विवाह मॅट्रिमोनी में आपका स्वागत है।
धन्यवाद।
मनोज कुमार शाह