एक बार रावण सहस्त्रबाहु अर्जुन को जीतने की इच्छा से उनके नगर गया। नर्मदा की जलधारा देखकर रावण ने वहां भगवान शिव का पूजन करने का विचार किया।
जिस स्थान पर रावण पूजा कर रहा था, वहां सहस्रबाहु अपनी पत्नियों के साथ नर्मदा में अठखेलियाँ कर रहे थे तो उन्होंने अपनी एक पत्नी के कहने पर अपने हाथ फैलाकर नर्मदा के बहाव को रोक दिया था।
इससे नर्मदा का जल इधर-उधर से बहने लगा। कुछ ही दूरी पर शिवजी की उपासना में लीन रावण की पूजन सामग्री इससे बह गई। कारण पता चलने पर क्रोधित रावण सहस्रबाहु को दंड देने के लिए उनके पास पहुंचा।
दोनों में युद्ध शुरू हो गया और अंततः सहस्रबाहु के एक तगड़े प्रहार से रावण अचेत होकर धरती पर गिर पड़ा। उसे बंदी बना लिया गया। सहस्रबाहु अर्जुन ने त्रिलोक विजेता रावण को भी धूल चटा दी। बाद में रावण के पितामह महर्षि पुलत्स्य के आग्रह पर उसे छोड़ा गया। इसके बाद रावण ने सहस्त्रार्जुन से मित्रता की और लंका की ओर प्रस्थान किया।