हलषष्ठी  व्रत

हलषष्ठी  व्रत  : जन्माष्टमी के पहले भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी व्रत भगवान बलभद्र जी की पूजा कर के मनाया जाता है। इस व्रत को पूरे भारत में मनाया जाता है । स्थान विशेष पर इसे कई नाम हैं जैसे ललई छठ, हरछठ,  हलछठ,  तिन्नी छठ या खमर छठ । इस दिन हल से उगाये जाने वाले अनाज और शब्जी का सेवन नहीं किए जाने का विधान है। इस दिन गाय के दुध और उससे बने किसी सामाग्री का सेवन नहीं किया जाता ।

हलषष्ठी व्रत की मान्यता : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन बलभद्र जी का जन्म हुआ था। बलभद्र जी का प्रधान शस्त्र हल है, इस दिन हल से जोड़ कर हल षष्ठी,  हरछठ या ललही छठ के रूप में भी मनाया जाता है। यह मान्यता है कि इस व्रत को करने से पुत्र पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं। 

हलषष्ठी की पूजा विधि: यह पर्व पूरी स्वाक्षता तथा सफाई के साथ महिलाएँ मनाती आई हैं। स्नान के बाद साफ कपड़े पहन कर पूजा स्थान को भैंस के गोबर से लीपा जाता है वहीं एक तलब (स्वरूप) बनाया जाता है । इस तालाब में झरबेरी (एक कंटीली झाड़ी है जिसमें बेर जैसे फल लगते हैं।) कुश, पलाश, महुआ की टहनी, अमलतास की टहनी को बांधकर तालाब में गाड़ दिया जाता है। चढ़ावा के लिए सात अनाजों धान, मक्का, गेंहू, जौ, अरहर, मूंग मिट्टी के पात्र मेँ चढ़ाया जाता है। इसे “सतनाजा” कहा जाता है।

इसके बाद हरी कजरियां (हरे गेहूं जवार), धूल के साथ भुने हुए चने और जौ की बालियां चढ़ते हैं। फूल माला, आभूषण और हल्दी से रंगा हुआ कपड़ा, नीला कपड़ा भी चढ़ता है। फिर भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन करें। गाय के दूध से बने चीजों का उपयोग नहीं किया जाता है। अंत में हरछठ की कथा सुनते हुए विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना होती है।

हलषष्ठी का व्रत कथा:  इस व्रत से जुड़ी एक कथा को जानते हैं। एक गाव में एक ग्वालिन रहती थी, वह एक समय गर्भवती थी और उसके बच्चे के जन्म लेने का समय नजदीक था, लेकिन उस दिन के दूहे हुए दूध-दही खराब न हो जाए, इसलिए वह सारे दूध-दही उसको बेचने चल दी। कुछ दूर पहुंचने पर ही उसे प्रसव पीड़ा आरम्भ हुई और उसने झरबेरी के झाड़ की ओट में उसने एक बच्चे को जन्म दिया। उस दिन हल षष्ठी थी। थोड़ी देर विश्राम करने के बाद वह बच्चे को वहीं छोड़ दूध-दही बेचने चली गई। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने गांव वालों ठग लिया। इससे व्रत करने वालों का व्रत भंग हो गया। इस पाप के कारण झरबेरी के नीचे स्थित पड़े उसके बच्चे को किसान का हल लग गया। दुखी किसान ने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और चला गया।

थोड़ी देर जब ग्वालिन दूध बेच कर लौटी तो बच्चे की ऐसी दशा देख कर उसे अपना पाप याद आ गया। उसने तत्काल प्रायश्चित किया और गांव में घूम कर अपनी ठगी की बात और उसके कारण खुद को मिली सजा के बारे में सबको बताया। उसके सच बोलने पर सभी ग्रामीण महिलाओं ने उसे क्षमा किया और आशीर्वाद दिया। इस प्रकार ग्वालिन जब लौट कर खेत के पास आई तो उसने देखा कि उसका पुत्र बिल्कुल सही अवस्था मेँ है और वह हँस-खेल रहा था। तभी से इस हलषष्ठी के व्रत को मनाया जाने लगा।
हलषष्ठी के व्रत कुछ अन्य कथाएँ : –द्वापर युग मे एक बार भगवान कृष्ण और धर्मराज युधिष्ठिर आपस में पुराणोक्त चर्चा मेंसंलग्न थे। तभी महाराज युधिष्ठिर ने पूछा हे भगवान! हे कृष्ण! हे मधुसुदन! पुत्र से संबंधित समस्तमनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला उत्तम व्रत कौन सा है। यदि मेरे ऊपर आपकी कृपा हो तो कृपा कर कहिए। तब भगवान श्री कृष्ण बोले हे राजन्! हलषष्ठी के समान दूसरा कोई व्रत नही है। तब धर्मराज ने पूछा कि हे महाराज यह व्रत कब और कैसे प्रगट हुआ। तब श्री कृष्ण जी बोले कि हे राजन् इस व्रत का आरंभ हमारी माता से हुआ। हमारे माता-पिता के छः पुत्रो को कंस ने मार डाला था। तो माता देवकी एक दिन अत्यंत उदास होकर बैठी हुई थी। उसी समय नारद जी वहाँ उपस्थित हुए और माता देवकी से उनकी उदासी का कारण पूछा। तब माता देवकी ने नारद जी को अपने पुत्रो के नष्ट होने की बात बताई। श्री नारद जी ने कहा कि बेटी उदास मत हो। हलषष्ठी महारानी का व्रत करो। देवकी ने महिमा पूछा तो नारद जी ने एक प्राचीन इतिहास सुनाया।

आर्यावर्त में एक महान प्रतापी राजा हुए जिनका नाम चंद्रव्रत था। उनको एक ही पुत्र था। राजा चंद्रव्रत ने एक तालाब खुदवाया परंतु उसमें जल ना रहे। सब सूख जाय राहगीर तालाब को सूखा देखकर राजा को गाली देकर वापस हो जाते राजा सुन-सुनकर अत्यंत दुखी हुए । आर्यावर्त में एक महान प्रतापी राजा हुए जिनका नाम चंद्रव्रत था। उनको एक ही पुत्र था। राजा चंद्रव्रत ने एक तालाब खुदवाया परंतु उसमें जल ना रहे। सब सूख जाय राहगीर तालाब को सूखा देखकर राजा को गाली देकर वापस हो जाते राजा सुन-सुनकर अत्यंत दुखी हुए और कहने लगे कि मेरा तो धन और धर्म दोनो ही नष्ट हो गया। एक रात राजा को वरुण देव ने स्वप्न में दर्शन दिया और कहा कि हे राजन् अपने पुत्र की बलि दोगे तो तालाब में पानी आ जावेगा। राजा ने मंत्री व सभासदों को रात्रि का स्पप्न सुनाया और कहा तालाब में पानी रहे या ना रहे पर मैं अपने इकलौते पुत्र की बलि नहीं दूँगा। इस बात को राजकुमार ने सुना और कहा मैं स्वयं बलि हो जाऊँगा। जिससे मेरे पिताजी महाराज को राहगीरों की गालियों सुनने को नहीं मिलेगी तथा मेरा और मेरे पिता दोनों का यश होगा ऐसा कहकर तालाब की परिक्रमा की और बीच में जाकर बैठ गया। क्षण भर में तालाब भर गया कमल खिल गए और जलजंतु बोलने लगे। इस बात को सुनकर राजा बहुत दुखी हुए और वन को चले गए। वन में राजा ने देखा पाँच स्त्रियाँ हलषष्ठी व्रत की पूजा कर रही थी। राजा के पूछने पर उन्होंने व्रत का महात्म और विधान बतला दिया। राजा राजमहल लौटकर रानी से इस व्रत की पूजा करने को कहा। रानी ने उसी दिन व्रत की और हलषष्ठी महारानी की पूजा की पूजा के प्रभाव से राजा का लड़का तालाब से निकलकर खेलने लगा। राजा-रानी ने जब समाचार सुने तो बड़े प्रसन्न हुए और लड़के को अपने घर ले आये। तब से प्रतिवर्ष रानी हलषष्ठी महारानी का व्रत करने लगी। || बोलो हलषष्ठी महारानी की जय ॥ ॥ इति प्रथमोध्यायः ॥

( कथा 2 प्रारंभ ) ॥ अथ हलषष्ठी व्रत कथा ॥

नारद जी दूसरी कथा कहते हुए कहने लगे। अवंतिका नगरी में संपत लाल नामक व्यक्ति रहता था। उनकी दो स्त्रियाँ थी रेवती एवं मानवती। इस तरह दोनो सौत पति के साथ आनंद पूर्वक रहती थी। भाग्य से रेवती को कोई संतान नहीं हुआ परन्तु मानमती ने दो पुत्रों को जन्म दिया। अब तो सौत के बच्चों को देखकर रेवती के मन में ईर्ष्या की भावना बढ़ने लगी। रेवती एक दिन मानमती से छल पूर्वक बोली कि हे बहन! तुम्हारे पिता जी बहुत बीमार है और तुम्हे देखने को बुलाये है। मुझे इस प्रकार एक राहगीर ने सूचना दी है। मानमती पिता को अस्वस्थ सुनकर दुखी हुई और अपने पुत्रों को रेवती को सौंपते हुए कही बहन में अपने पिताजी को देखकर आती हूँ तब तक तुम मेरे पुत्रों का ध्यान रखना ऐसा कहकर वह चली गई। इधर रेवती ने अपनी चाल में सफलता पाती हुई दोनो बच्चों को मारकर फेंक दिया। उधर मानमती अपने पिताजी को स्वस्थ देखकर चकित रह गई। पिता | जी के पूछने पर रेवती की बात सुनाई और कही कि मैं अब अपने घर जाती हूँ।

तब माता ने कहा पुत्री आज हलषष्ठी व्रत है। इसलिए मत जा मानमती ने भी श्रद्धा से पूजा व प्रार्थना की कि हे हलषष्ठी देवी माता ! मेरे दोनों बच्चों के ऊपर कोई आपत्ति न आये उनकी सहायता करना उन्हें दीर्घायु करना दूसरे दिन पिता की आज्ञा से अपने घर के लिए चली तभी रास्ते में गांव के बाहर अपने दोनों बच्चों को खेलते देखकर आश्चर्य में डूब गई कि इन्हें यहाँ कौन लाया।

तब बच्चों ने बताया कि हे माता रेवती माता ने हमें मारकर यहाँ फेंक गई थी एक दूसरी माता आकर हमें जिंदा कर गई मानमती हलषष्ठी देवी की कृपा मानकर बच्चों को लेकर अपने घर पहुँची रेवती और अन्य स्त्रियों ने आश्चर्य माना और मानमती से सारी बात जानकर उस दिन से सभी स्त्रियाँ हलषष्ठी माता का व्रत करने लगी।

॥ बोलो हलषष्ठी महारानी की जय ॥ ॥ इति द्वितीयो अध्यायः ॥

संपादक Manoj Kumar Shah

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