मंदिर में स्थापित मूर्ति हजारों वर्ष पूर्व खुदाई के दौरान मिली थी। उन्हीं दिनों जगाधरी के एक सेठ बंसी लाल के यहां कोई संतान नहीं थी। तभी उनके सपने में भगवान बलभद्र जी ने दर्शन दिए और सेठ बंसीलाल को गांव धौलरा में उनका मंदिर बनवाने के लिए कहा। जिस पर सेठ गांव में पेड़ के नीचे रखी भगवान बलभद्र जी की मूर्ति वहां से उठाकर बैलगाडिय़ों द्वारा जगाधरी ले जाने लगा। जैसे ही बैलगाड़ी गांव से बाहर निकलने लगा तो बैल अंधे हो गए। जिसके बाद सेठ को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने गांव में ही मंदिर बनवाया। जिसके बाद उसके घर बेटे ने जन्म लिया।
तब से गांव में हरवर्ष सतवा तीज के दिन मेले का आयोजन होता आ रहा है। मंदिर में लोग अपनी मनोकामना के लिए आते हैं। खुदाई के दौरान मिली भगवान बलभद्र जी की मूर्ति किस धातु की बनी है, इसके बारे में आजतक पता नहीं चल पाया है। भगवान बलभद्र जी की मूर्ति पर कोई रंग नहीं ठहरता। कई बार उन्होंने मूर्ति पर रंग किया लेकिन कुछ दिनों बाद ही रंग उतर जाता है।
श्री बलभद्र मंदिर धौलरा
गांव धौलरा में भगवान बलभद्र का अक्षय तृतीया का विशाल मेला लगता है। लगने वाले इस विशाल मेले की तैयारियों को लेकर गांव के लोगों में भारी उत्साह होता है। इस मेले में दूरदराज के लोग शामिल होते है तथा भगवान बलभद्र की दिव्य प्रतिमा के दर्शन करते हैं। बताया जाता है कि दिव्य प्रतिमा उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर और गांव धौलरा के अलावा कहीं नहीं है। गांव के बलभद्र मंदिर में प्रति वर्ष अक्षय तृतीया को लगने वाले इस विशाल मेले में सभी धर्मो के लोग आकर भगवान बलभद्र की पूजा अर्चना कर मन्न्नते मांगते है
अक्षय तृतीय के अवसर पर गाँव धौलरा में को ऐतिहासिक व प्राचीन भगवान बलभद्र के मंदिर में एक दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। पंचायत द्वारा आयोजित इस मेले में श्रद्धालु भगवान बलभद्र के मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर मन्नतें मांगेगे। गाँव धौलरा के धौलरा के बडे बजुरगो उन्होंने बताया कि भगवान बलभद्र के मंदिर में पुराने समय से एक दिवसीय मेले का आयोजन अक्षय तृतीय के अवसर पर होता आ रहा है। मेले में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई सहित सभी धर्मो के लोग भाग लेते है। मंदिर में स्थापित प्राचीन बलभद्र की मूर्ति सैकड़ों वर्ष पहले गाँव में खुदाई के दौरान मिली थी। तब से मूर्ति को मंदिर में स्थापित कर क्षेत्र के लोग पूजा करते आ रहे है। और यहा पर मांगी मनत पुरी होती है