श्री बलभद्र / बलराम जी की पूजा पद्धति और पटल गर्ग संहिता के अनुसार

दुर्योधन उचाव

भगवान गर्गाचार्यण गोपीयूथाय कथं दत्तं
बलभद्रपंचाङ्ग तत्कृपया बदतात । त्वं सर्वज्ञोऽसि ।। १

दुर्योधन ने कहा – भगवान आप सर्वज्ञ हैं । यह बताने की कृपा किजिये कि गोपियों की यूथको श्रीगर्गाचार्यजी ने बलभद्र-पंचांग किसप्राकार प्रदान किया था ।

प्राडविपाक उवाच:

कौरवेन्द्र एकदा गर्गाचार्यः कालिंदनन्दिनीं स्नातु गर्गाचलाद्व्रजमंडलं चाजगाम । तत्रैकांते मरुल्लीलैजल्ललितलतातरुपल्लवपुष्पगंधमत्तमिलिंदपुंजे कालिंदीकूलकलितनिकुंजे श्रीरामकृष्ण ध्यानतत्परं गर्गाचार्य प्रणम्य नागेन्द्रकन्याः स्म इति जातिस्मरा गोपकन्याः श्रीमद्वलभद्रप्राप्त्यर्थ सेवन पप्रच्दुस्तासां परमां भकिन्त वीक्ष्य पद्धतिपटलस्त्रोत्रकवचसहस्त्र नामानि गोपीयूथाय स प्रददौ किं भूयस्त्वं तद्ग्रहर्ण कर्तुमिच्छसि वादतात् । २

प्राडविपाक मुनि बोले-हे कुरूराज एक बार गर्गजी यमुना-स्नान करने के लिये गर्गाचल से चलकर व्रजपुर में पधारे । यमुना जी के तट की ललित लताएँ पवन के प्रवाह से हिल रहीं थीं । पुष्पों के सौरभ से मत्त भ्रमरों के समूह गुंजार कर रहे थे । इस प्रकार के यमुना-तट पर एक निकुंज के नीचे एकांत में श्री गर्गाचार्य भगवान बलराम और श्रीकृष्ण का ध्यान करने लगे । उसी समय गोपियों ने आकर उनको प्रणाम किया । तभी उनको स्मरण हो आया कि हम पूर्व जन्म की नागेन्द्र कन्याए हैं । तब उन्होंने बलभद्र जी को प्राप्त करने के लिए गर्गजी से सेवा का साधन पूछा । उन कन्याओं की इस अनुपम भक्ति को देखकर उनके उद्देश्य की सिद्धि के लिये गर्गजी ने उनको पद्धति, पटल, स्तोत्र, कवच और सहस्त्र नाम-यह पंचाग-साधन प्रदान किया । अब बताओ, तुम और क्या सुनना चाहते हो । -२

दुर्योधन उचाव:

रामस्य पद्धतिं ब्रूहिययता सिद्धि ब्रजाम्यहम् ।
त्वं भक्तवत्सलों ब्रह्मन् गुरूदेव नमोस्तुते ।। ३

दुर्योधन ने कहा-हे ब्रह्मन् गुरूदेव आप भक्तवात्सल हैं मैं आप को नमस्कार करता हूँ । आप कृपया बलराम जी की ‘पद्धति, का वर्णन करें जिसे जानकर मैं सिद्धि प्राप्त कर सकूँ ।

प्राडविपाक उवाच:

राममार्गस्य नियम श्रृगु पार्थिवसत्तम ।
येन प्रसन्नो भवति बलभद्रो महाप्रभुः ।। ४

प्राडविपाक मुनि बोले – हे राजन  जिससे महाप्रभु बलराम जी प्रसन्न हो जाते है, उस बलभद्र पद्धति के नियम को सुनो

सहस्त्रवदनों देवो भगवान् भुवनेश्वरः ।
न दानैर्न च तीर्थैश्च भक्त्या लभ्यस्त्सवनन्यया ।। ५

ये भगवान बलदेव जी सहस्र मुख वाले हैं । समस्त भुवनों के अधीश्वर है । बहुत से दान और तीर्थ – सेवन से भी उनकी प्राप्ति न सकती । वे तो केवल ‘अनन्य-भक्ति’ से प्राप्त होते हैं |

सत्संगमेत्याशु शिक्षेद् भक्ति वै श्रीहरेर्गुरोः ।
स सिद्धिः कथितो जायं यस्य वै प्रेम लक्ष्मण ।। ६

श्रीहरि के बड़े भाई उन बलराम जी की भक्ति सत्संग के द्वारा शीघ्र प्राप्त हो सकती है | जिसमें प्रेमलक्षणा भक्ति का उदय हो जाता है, वे ही सिद्ध पुरूष है |

ब्रह्म मुहूर्ते चोत्थाय राम कृष्णेति च ब्रुवन् ।
नत्वा गुरूं भुवं चैव ततो भूम्यां पदं न्यसेत् ।। ७

ब्रह्म मुहूर्त में उठते ही भगवान राम कृष्ण के नामों का उच्चारण करें, फिर गुरुदेव को और पृथ्वी को (मन से) प्रणाम करके पृथ्वी पर पैर रखें।

वायर्योऊपस्पृश्य चोत्थाय रहसि स्थितो भूत्वा कुशासने ।
हस्तावुत्संग आधाय स्वनासाग्रनिरीक्षणः – ८

तदानुसार स्नान-आचमन करके निर्जन में कुशासन पर बैठ जाएं, दोन हाँथ को गोद में रख लें और अपने नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि जमाकर परमदेव सनातन हरि भगवान श्री बलराम जी का ध्यान करें ।

ध्यायेत्पर हरि देवं बलभद्र सनातनम् ।
गौर गीलाम्वरं हद्ं वनमालाविभूषितम् ।। ९

उनका गौर वर्ण है । उन्होंने नीलाम्बर धारण कर रखा है । वे वनमाला से विभूषित हैं । बड़ी मनमोहन मूर्ति है । ऐसे हलधर भगवान बलराम जी को प्रसन्न करने के लिये नित्य उनका ध्यान करना चाहिये |

एवं ध्यानपरो नित्यं प्रीत्यर्थ हलिन: प्रभु: ।
त्रिकालध्याकृच्छुद्धा मौनी कोधयविवर्जित ।। १०

साधक को चाहिये कि वह बाहर-भीतर से पवित्र हो, मौन-धारण करें और क्रोध का त्याग करके तीनों काल में संध्या-वन्दन करें |  

अकामी गतलीमश्व निर्माह: सत्यवाग् भवेत् ।
द्विवारं जलपानार्थी एकमुक्ती जितेन्द्रियः ।। ११

मन में कोई कामना लोभ और मोह न रहे । सत्य भाषण करें । जितेन्द्रिय होकर एक बार केवल पायस का भोजन करें । दो बार जलपान करें |

क्षौमाम्बरी भूमिशायी भूत्वा पायसमीजनः ।
एवं निर्जितपडवाँ भवेदेकाग्रमानसः ।।
तस्य प्रसन्नो भवति सदा संकर्षणो हरिः ।
परिपूर्णतमः साक्षात्सर्वकारणकारणः ।।
इत्थं श्रींबलभद्रस्य कथिता पद्धतिर्मया ।
कौरवेन्द्र महाबाहो कि भयः श्रोतुमिच्छसि ।। १२-१४

पवित्र रेशमी वस्त्र पहने और जमीन पर शयन करें । इस प्रकार छः शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके एकाग्र मन से भजन करने पर सम्पूर्ण कारणों के कारण परिपूर्णतम साक्षात् भगवान श्रीसंकर्षण जी सदा के लिए प्रसन्न हो जाते हैं । हे महाबाहु कौरव राज ! इस प्रकार मैंने महात्मा बलभद्रजी की ‘पद्धति का वर्णन किया, अब तुम और क्या सुनना चाहते हो ?

दुर्योधन उवाचः

मुनींद्र देवदेवस्य पटलं ब्रूहि में प्रमोः ।
येन सेवां करिष्यामि तत्पदांबुजयोः सदा ।। १५

दुर्योधन ने कहा- हे मुनिराज ! अब देवदेव बलराम जी का पटल सुनाइये, जिसका साधन करके मैं सदा उनके चरण-कमलों की सेवा कर सकूँ |

प्राडविपाक उवाच:

बलस्य पटलं गुह्यं रिद्धि सिद्धि प्रदायकम् ।
एकांते ब्रह्मणा दत्तं नारदाय महात्मने ।। १६

प्राड्विपाक मुनि बोले भगवान बलराम जी का पटल महान गोपनीय और सिद्धि प्रदान करनेवाला है । इसे पहले ब्रह्माजी ने एकान्त स्थान में महात्मा नारदजी को दिया था

प्रणचं पूर्वमुद्धुत्य कामवीजं तत् परम् ।
कालिंदी भेदन पर संक्रमण मतः परम् ।। १७
चतुर्थ्यतं द्वयं कृत्वा स्वाहा पश्चात विधान च ।
मंत्रराजमिमं राजन् ब्रह्मोक्तं षोडशाक्षरम् ।। १८

पहले प्रणव (ऊँ) लिखकर फिर कामबीज (कलीं) लिखना चाहिये । तत्पश्चात् ‘कालिन्दी भेदन और ‘संक्रमण’- इन दो पदों का चतुर्थ्यन्त लिखकर अन्त में स्वाहा जोड़ देना चाहिये । यों करने पर ऊँ क्लीं कालिन्दीभेदनाय संकर्षणाय स्वाहा’ – यह मंत्र बन जाता है । यह षोडशाक्षर मंत्रराज ब्रह्माजी के द्वारा कहा गया है । १७-१८

जपेल्लक्षं व्रती भूत्वा सहस्त्राणि च षोडश ।
इहामुत्र परां सिद्धि संप्राप्नोति न संशय ।। १९

मनुष्य को व्रत लेकर इस मंत्र का एक लाख सोलह हजार जप करना चाहिये । इस प्रकार करने पर साधक इस लोक और परलोक में परम सिद्धि को प्राप्त कर लेता है, इसमें कोई संदेह नहीं ।

अथ जप्तस्य मंत्रस्य में पूजां समाचरेत् ।
द्वात्रिंशत्पत्रसंयुक्तं कर्णिकाकेस रोज्जवलम् ।।
भव्यं कंजं पंचवर्ण लिखित्वा स्थंडिल शुभे
तस्योपरि न्यसेद्राजन हेमसिंहासानं शुभम् ।
तस्मिन् श्रीबलदेवस्य परामर्चा प्रपूजयेत् ।। २०-२१

मंत्र- जप के बाद विशेष रूप से महापूजा करनी चाहिये । हे राजन्! मनोरम स्थण्डिल पर कर्णिका स्थित केसरों से उज्ज्वल बत्तीस दलों वाला एक सुन्दर पांच रंग का कमल अंकित करें। उस पर मंगलमय स्वर्ण-सिंहासन रखें । उस के ऊपर बलराम जी की परमश्रेष्ठ मूर्ति को पधारकर उनकी भलीभांति पूजा करें ।

ऊँ नमो भगवते पुरूषोत्तमाय वासुदेवाय संकर्षणाय सहस्रवदनाय महानन्ताय स्वाहा ।
अनेन मंत्रेण शिखाबंधनं कृत्वा सर्वतस्यं प्रणम्य तत्समुखो भूत्वा स्वयं नतो भवेत् ।
ऊँ जयजयानंत बलभद्र कामपाल तालांक कालिंदीभंजन आविराविर्भूय मम संमुखो भवेति ।
अनेन मंत्रेणावाहनं कुर्यात् ।
 ऊँ नमस्तेऽस्तु सीरपाणे हलमुसलधर रौहिणेय नीलाम्बर राम रेवती रमण नमस्तेऽस्तु ।
अनेन मंत्रेणासनपाद्या्यस्नानमधुपधूपदीपयज्ञोपवीत नैवेद्य वस्त्राभृषणगंधपुष्पाक्षतपुष्पांजलिनीराजनादीनुपचारान् प्रकल्पयेत् ।
ॐ विष्णवे मधुसूदनाय वामनाय त्रिविक्रमाय श्रीधराय हषी-केशाय पद्मनाभाय दामोदराय संकर्षणाय वासुदेवाय प्रद्युम्नायानिरूद्धायाधोक्षजाय पुरुषोत्तमाय श्रीकृष्णाय नमः ।
इति पादगुल्फजानूकल्युदरपार्श्वपृष्टिभुजा कंधे नेत्र शिरांसि पृथक् पृथक् पूजयामि मंत्रेण सर्वांगपूजां कुर्यात् ।

अथ शंखचक्रगदापद्मासिधनुर्बाणहल मुसलकौस्तुभवनामाला श्रीवत्स- पीतांबरनीलांबर बंशीवेत्रगरूडांकतालांकरथदारूकसुमतिकुमुदकुमुवाव – श्रीदामादीन् प्रणवपूर्वेण चतुर्थ्यतेन नमः संयुवते न नाममात्रेण पृथक् पृथक् संपूज्य । तथा विप्वक्सेनवेदव्यासदुर्गाविनायकविक्पालग्रहादीन् कमले सर्वतः स्वे स्वे स्थाने संपूजयेत् । पुनः परिसमूहनादिस्थालीपाकविधानेन वैश्वनरं संपूज्य पूर्वोक्तेन मूलमंत्रेण पंचविशतिसहरत्रा्याहुतीर्जुहुयात् । तथाष्टौ सहस्त्राणि द्वादशाक्षरेण ण तथा अष्टौ सहस्त्राणि चतुर्वृहमंत्रेणाहुती हुयान् । ततोऽग्नि प्रदक्षिणीकृत्र्सनगस्कृत्याचार्ज महार्हवस्त्रसुवर्णाभरणताम्रपात्रसवत्सगोसुवर्णदक्षिणानिः संपूज्य तथा

ब्राह्मणान्भोजनायैः सपूज्य नगरजनेभ्यो भोजन दत्ताचार्यान्णमेत् ।
इत्य बलस्य पटलानुसारेण योऽनुस्मरति इहागुत्र सिद्धिरागृकशिभि संवृतिभवति ।
श्री रामपाल गुहा मया ते हानुवर्णितम् । सर्वसिक्षिप्रदं राजन् कि भूयः श्रोतुमिच्छसि ।।22 ।।

ॐ नमो भगवते पुरूषोत्तमाय वासुदेवाय संक्रमण साहस्त्रवदनाम महानन्ताय स्वाहा‘-
इस मंत्र से शिखा- बंधन करें । तत्पश्चात श्री बलराम जी को सब दिशाओं में प्रणाम करके उनके सम्मुख अत्यंत विनय पूर्वक बैठ जाये । फिर ‘ऊँ जय जयानंत बलभत कागमपाल तलांगाक कालिन्दीभंजनं आविराविर्भूय मम सम्मुखो भव । इसको पढ़कर आवाहन करें । तदनन्तर ‘नमस्तेऽस्तु सौरपाणे हलमूसलधर रौहिणेय नीलाम्बर राम रेवती रमण नमस्तेऽस्तु’ । इस मंत्र के द्वारा आसन, पाद्य, अध्र्र्थ स्नानीय, यज्ञोपवीत, वस्त्र आभूषण, गंध, अक्षत, पुष्प, मधुपर्क, धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्पाजंलि आदि उपचार प्रदान करे । तदनन्तर ‘ॐ मधुसूदनाय वामनाय त्रिविक्रमाय श्रीधराय हृषीकेशाय पद्मनाभाय दामोदराय संकर्षणाय वासुदेवाय प्रद्यम्नायानिरूद्धायाधोक्षजाय पुरूषोत्तमाय श्रीकृष्णाय नमः” – इस मंत्र के द्वारा पाद, गुल्फ, जानु, ऊरू, कटि, उदर, पार्श्व, पीठ, भुजा, स्कंध, अधर, नेत्र और सर्वाकी पृथक्-पृथक् पूजा करें । इसके बाद शंख, चक्र, गदा, पद्म, असि, धनुष, वेत्र, हल, मुसल, कौस्तुभ, वनमाला, श्रीवत्स, पीताम्बर, नीलाम्बर, वंशी, वेत्र, गरूडाङ्क और तालांकध्वज से चिहिन्त रथ, दारूक, सुमति, कुमुद, कुमुदाक्ष और भदामा-इन शब्दों के पहले ऊँ और अंत में चतुर्थी विभक्ति लगाकर अंत में ‘नमः’ शब्द जोड़ दे । इससे ऊँ शांखांय नमः, ऊँ चक्राय नमः, आदि रूप बन जायेगा । इन मंत्रों के द्वारा सबका पूजन करें । इसी प्रकार कमल के सब ओर अपने-अपने स्थान पर विष्वक्सेन वेदव्यास, दुर्गा, गणेश, दिक्पाल और नवग्रह आदि का पृथक-पृथक पूजन करना चाहिये । तदनन्तर परिसमूहन आदि स्थालीपाक के विधान से अग्नि-देव की पूजा करके पूर्वोक्त ‘ऊँ क्लीं कालिन्दीभेदनाय संकर्षणाय स्वाहा” | इस मंत्र से पचीस हजार आहुतियां दें । फिर इसी प्रकार ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’- इस द्वादशाक्षर मंत्र से आठ हजार और चतुर्व्यूह संज्ञक ‘ऊँ नमो भगवते तुभ्यं वासुदेवाय साक्षिणे । प्रद्युम्नायानिरूद्धाय नमः कर्षणाय च ।। इस मंत्र से आठ हजार आहुतियां दें । इसके बाद अग्नि की प्रदक्षिणा करें और आचार्य को नमस्कार करके उन्हें मूल्वान् वस्त्र, स्वर्ण के आभूषण, ताम्रपात्र, सवत्सा गौ ओर स्वर्ण आदि दक्षिणा देकर प्रसन्न करें। फिर ब्राह्मणों का पूजन-संस्कार करके उनको तथा नगरवासी जनों को भोजन करायें । तत्पश्चात् आचार्य को प्रमाण करें । जो पुरूष इस पटल-पद्धति के अनुसार श्री बलराम जी का स्मरण-पूजन करता है, वह इस लोक और परलोक में विविध सिद्धियों और सिद्धियों के द्वारा सुसम्पन्न होता है । हे राजन् ! भगवान् बलराम जी का यह गोपनीय और सर्व सिद्धिप्रद पटल’ तुमको सुना दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो ?

————संकलन : मनोज कुमार शाह : www.samajbandhu.com 9435267008

संपादक Manoj Kumar Shah

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