“आद्रा” एवं भगवान बलभद्र जी –

“आद्रा” एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है, जिसमें भगवान इंद्र और भगवान बलभद्र की पूजा की जाती है। यह एक सामाजिक परंपरा है, जो बिहार के लोगों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

इस पर्व के दौरान खास खाने को बनाया जाता है, जैसे दाल पूरी, खीर, और आम, यह भोजन आद्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। इसके अलावा, कृषि के मौसम को प्राप्त करने के लिए भगवान इंद्र और बलभद्र की पूजा भी की जाती है, जिससे खेती में अच्छी प्रकृति की प्राप्ति होती है।

भगवान बलभद्र को कृषि का देवता माना जाता है, और उनके अस्त्रों के आशीर्वाद के साथ ही किसान अपने काम में सफलता प्राप्त करते हैं। उनके अस्त्र हल का सहारा लेकर हम खेत जोतते हैं और उपजे हुए बीज को घर लाकर भगवान बलभद्र जी से प्राप्त मूसल से कुटाई कर खाने योग्य अन्न बनाते हैं। इसी लिए बलभद्र जी को कृषि का देवता भी माना जाता है।

बलभद्र सहस्रनाम में कुछ नाम भी शामिल हैं, जिनमें “हलायुध,” “नीलाम्बर,” “मुसली,” “हली,” और “इंद्रियेश” हैं, जो उनकी महत्वपूर्ण गुणों को प्रकट करते हैं। ये सभी तत्व धार्मिक आदर्शों और कृषि संबंधी परंपराओं को महत्वपूर्ण रूप से दिखाते हैं, और यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

जय बलभद्र!

आद्रा :आर्द्रा भारतीय ज्योतिष में एक नक्षत्र है.  यह 27 नक्षत्रों में से छठा नक्षत्र है.  आर्द्रा का अर्थ है “नम”.  यह आकाश में मणि के समान दिखाई देता है। आर्द्रा को जीवनदायी भी कहा जाता है. इसे कृषक कार्य करने वाले लोगों का सहयोगी माना जाता है. माना जाता है कि इस नक्षत्र से वर्षा का आरंभ हो जाता है जो कृषि के लिए शुभ होती है। यह राहु का नक्षत्र है और मिथुन राशि में आता है। हर वर्ष सूर्य आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करते हैं। सूर्य जब इस नक्षत्र में प्रवेश करते हैं तब पृथ्वी रजस्वला हो जाती है अर्थात यह समय बीज बोने के लिए सही माना जाता है। ग्रह-नक्षत्र की इस स्थिति से 52 दिन तेज बारिश का योग बनता है।

संपादक Manoj Kumar Shah

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