“ओम् रेवती बलभद्राय नमों नमः”
भगवान श्री बलभद्र एवं रेवती माता का विवाह तिथि हिंदू कलेंडर के अनुसार हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन ही अक्षय तृतीया मनाया जाता है और मान्यता है कि ही माता गंगा धरती पर इसी दिन अवतरित हुई थीं ।
कैसे मनाएं यह शुभ दिन :
आप अपने अपने घर या सामूहिक रूप से इस विवाह तिथि को मनाने का अनुष्ठान कर सकते हैं । इस दिन प्रातः दैनिक क्रियाओं से मुक्त होकर स्नान करें और सुबह शुभ मुहूर्त में भगवान श्री बलभद्र तथा माता रेवती जी के विवाह का संकल्प लें।
पूजा स्थान पर श्री बलभद्र तथा माता रेवती की तस्वीर या प्रतिमा को स्थापित करें। बलभद्र प्रतिमा में 1. उनके नीले रंग के वश्त्र श्री बलराम जी को और नीले या लाल रंग का वस्त्र माता रेवती जी को पहनाएं 2. बलभद्र मस्तक के ऊपर राजछत्र शेष नाग 3. बलभद्र जी हाँथों में हल, मूसल, गदा हो और माता रेवती जी का 16 शृंगार करें ।
गणेश पूजन, संकल्प, तथा भोग लगा कर बलभद्र रेवती माता का पूजन किया जाता है | भोग रूपी प्रसाद में फल, मिठाई, दाल चावल, कढ़ी-बड़ी, पापड़, फुलौरा इत्यादी का भोग लगाना चाहिए। खिल्ली मीठा पान को भी पूजा के भोग प्रसाद के रूप में उपयोग करें ।
“श्री बलभद्र सहस्त्र नाम”
(( https://www.samajbandhu.com/jagran/balbhadra-sahasranaam/ इस लीक को क्लिक करें मंत्र को पढ़ें ))और “श्री बलभद्र-स्तोत्र-कवकच”
(( https://www.samajbandhu.com/jagran/balram-balbhadra-kawach/ इस लीक को क्लिक करें मंत्र को पढ़ें ))
का पाठ करें और “ओम् रेवती बलभद्राय नमों नमः” मंत्र का 108 बार तुलसी माल के साथ जाप करें।
इसके बाद माता रेवती और श्रीबलराम जी का गठबंधन करें और उनकी आरती करें।
इस अनुष्ठान का आयोजन और पूजा पति-पत्नी संग बैठ कर करें, और स्वयं भी गठबंधन जोड़कर ही पूजन करें।
इससे मानव मात्र का कल्याण होगा और आपके वैवाहिक जीवन खुशहाल होगा और प्रेम सर्वदा बना रहेगा, और पुत्र पौत्र से भरा रहेगा । यह पूजन आपके समृद्धि और खुशहाली के द्वार खोलता है।
जय बलभद्र !! जय माता रेवती !!
नोट: “बलभद्र मनावन” की विधि बलभद्र विवाह में नहीं मनानी चाहिए।