आईए, आज हम बलभद्र भगवान के एक प्राचीन मंदिर में चलते हैं । यह मंदिर पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले के बरोग्राम गाँव में अवस्थित है । इस मंदिर मे जाने के लिए बर्दवान शहर से सदारघाट होते हुए 30 किलो मीटर सफर करना पड़ता है । यहाँ बलराम जी की मूर्ति पूर्ण रूप से नीम की लकड़ी से बनी है । पूरे भारत में 14 भुजाओं वाले बलभद्र जी का केवल यहीं एक मंदिर की अबतक जानकारी है। इस मंदिर के स्वरूप का निर्माण बंगाल के कला से प्रभावित है । बर्दवान जिले के लोग इन्हें कृषि समृद्धि के देवता मानते हैं और उन्हे “बाबा बड़ों बलोराम” के नाम से पूजते हैं । इस मंदिर परिसर में एक बहुत बड़े मेला का आयोजन होता है। यह मेला बसंत पंचमी – सरस्वती पूजा के दिन लगता है । इसी समय भगवान बलभद्र जी की वार्षिक पूजा का अनुसठन भी किया जाता है। संक्रांति के दिन भी बलभद्र जी की विशेष पूजा की जाती है । कहा जाता है कि बर्दवान के महराज ने इस मंदिर के निर्माण के हेतु 365 बीघा जमीन दान स्वरूप दिया था ।
मूर्ति का स्वरूप : इस मूर्ति को सबसे ऊपर बलराम जी के छतरी के रूप में 14 मुख वाले सेसनाग का स्वरूप है । जो की अब 13 रह गयें हैं । इस मूर्ति की चौदह भुजायें हैं, इस मूर्ति के पाँच हाथ में बलभद्र जी हल, मूसल, गदा, पहिया और शंख पकड़े हुए हैं, और अन्य नौ हाथों में कोई भी हथियार नहीं, और वे उन हनथों से आशीर्वाद देते हैं । उनके विशाल खुले मुंह हैं बड़ी और लंबी-लंबी आंखें हैं । नुकीली मूंछें और दाढ़ी, एक आकर्षक चौड़ी छाती, कानों में मकर कुंतला, भू भाला, बाजू बन्ध, नूपुर पैर हैं । यह मूर्ति अलौकिक है ।
कथा : कहा जाता है कि एक बार “भयाशुर” नामक दैत्य का बध बलराम जी ने 14 भुजवों से किया था। तब से वही स्वरूप में भगवान जी कि पूजा की जाती है । इनमें से 10 भुजायें दुर्गा की और 4 भुजायें विष्णु भगवान की थीं ।
__ मनोज कुमार शाह; तिनसुकिया : असम : 9435267008