बलभद्र जी ने हल कैसे धारण किया _ कृत्तिवास रामायण

कृत्तिवास रामायण बांग्ला भाषा में रचित ग्रंथ है । यह उत्तर-भारतीय भाषाओं का पहला रामायण है। इसे बांग्ला भाषा में “श्रीराम पांचाली” के नाम से जाना जाता है । इस की रचना पद्रहवीं सदी में बांग्ला कवि कृत्तिवास ओझा जी ने की थी। इस रामायण में एक बलराम जी की कथा वर्णित है वह इस तरह है :

भगवान श्री राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन जी के विवाह होने के पश्चात राजा जनक चारों भाई के बिदाई के समय मनपसंद कुछ मांगने का अनुरोध करते हैं । रामचंद्रजी, भरतजी, शत्रुघन जी कुछ लेने या मांगने से इनकार कर देते हैं । लक्ष्मण जी से राजा जनक पूछते हैं कि आप को मैं क्या दे सकता हूँ ? तब लक्ष्मण जी बहुत ही विनम्रता और आँखों में आँसू ले कर राजा जनक से अनुरोध करते हुए कहते हैं  “हे राजन मुझे वह दिव्य हल देने की कृपया करें जिस हल ने माता जानकी को पृथ्वी से प्रकट करवाया है”। राजा जनक लक्ष्मण जी के इस अनुरोध को मान लेते हैं ।

इस तरह दिव्य हल को भगवान ब्रम्हा जी के द्वारा बलराम जी के कंधे पर दिया गया ।
विष्णु भगवान के शेषनाग के अवतार लक्ष्मण जी हुए और इनके द्वापर युग के अवतार बलराम जी ही हैं ।

संपादक Manoj Kumar Shah

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