- आज से लगभग डेढ़ सौ साल से भी पहले तत्कालीन मुड़वारा और आज के कटनी में जन्मे डॉक्टर हीरालाल जी
- रायबहादुर डॉक्टर हीरालाल जी को 1910 में राय बहादुर की उपाधि मिली।
- डॉ हीरालाल को इतिहास से जुड़े सभी पहलुओं का विशद् ज्ञान था |
- उनके नाम पर “हीरापुर बंधा” का नामकरण हुआ !
- उन्होंने लुप्त 10 हजार संस्कृत और प्राकृत पांडुलिपियों खोजीं |
- उन्होंने रॉबर्टसन कॉलेज के लिए उस ज़माने में 10 हजार की स्कॉलरशिप दिया | शासकीय सेवाओं के लिए विविध पदों पर वे रायपुर, बालाघाट, नागपुर, दमोह, जबलपुर और वर्धा में पदस्थ रहे और 1922 में वे डिप्टी कमिश्नर पद से नरसिंहपुर से सेवानिवृत हुए, जिसके बाद भी उनका शोध कार्य चलता रहा।
- कई शोध पत्र और पुस्तकें रायबहादुर हीरालाल को एक उच्चकोटि साहित्यकार भी बनाती हैं। प्रमुख कार्यों में 1914 में आई मध्यप्रांत और बरार के शिलालेख, 1908 में एथनोग्राफिक्स नोट्स, 1916 में ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ द सेंट्रल प्रॉविसेंस ऑफ इंडिया, रामटेक का दर्शन, चिमूर का घोड़ा, बुंदेलखंड की त्रिमूर्ति आदि उल्लेखनीय हैं।
- पुरातत्व के उच्च कोटि विद्वान होने चलते उन्हें चेदि कीर्ति चंद्र भी कहा जाता था।
- बहुत सरे क्षेत्रों में विशेषज्ञ होने के चलते फ्रांस सरकार ने मृत्यु के बाद उनका ब्रेन रिसर्च के लिए मांगा था।
- आप एक भाषा विज्ञानी थे तथा गौंड़ी, कोरकू, गदबी जैसी कई भाषाओं के जानकार थे।
- जनगणना अधिकारी, पुरातत्ववेत्ता, विज्ञान विषय के शिक्षक और डिप्टी कमिश्नर जैसी अनेक भूमिकाओं का निर्वहन किया।
- इनके नाम से भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया था |
- इस महान व्यक्ति के पास इतना कुछ था, जो बताया या लिखा जाना संभव नही है |