जय कलवार !
आइये हम आज ‘बान’ या ‘बान मिलान’ के बारे में जानते हैं |
कलवार समाज के बियाहुत कुड़ी के लोगों के बीच जब विवाह की चर्चा करतें हैं, तब एक पक्ष दूसरे पक्ष का “बान” पूछते हैं | दोनों पक्ष का बान यदि एक नाम का होता तब इसे “बान टकरा गईल” कहते हैं और यदि नाम अलग अलग होते हैं तो उसे “बान ना टकराईल” कहा जाता है | जब एक दूसरे का बान नहीं मिलता या टकराता नहीं तब ही विवाह सम्बन्ध पर चर्चा कर कुंडली और गुण का मिलान करते हैं | “बान टकरा गईल” के स्थिति में दोनों परिवार एक ही वंशवृक्ष के माने जाते हैं और विवाह नहीं होता |
बान की उत्पत्ति : हिन्दू रीति अनुसार विवाह एक ही वंश वृक्ष, कुल और खानदान में नहीं किये जाते | इस प्रथा को और भी कड़ाई से कलवार समाज के बियाहुत कुड़ी में माना जाता है, प्राचीन काल में इस प्रथा को मान्यता देते हुए 360 बान की रचना की गई है | इन सभी बान का नामाकरण निवास स्थान, कर्म और कुल के आधार पर प्रचलित हुए हैं |
बान होने के फायदे : यदि कोई व्यक्ति अपना बान लिखता या बताता है तो वह निर्विरोध और निश्चित रूप से कलवार के बियाहुत कुड़ी का ही है | वह व्यक्ति किस कुल या वंशवृक्ष से सम्बन्ध रखता है वह जानता है | आज का साइंस DNA जाँच की जो व्याख्या करता है वही कुछ हद तक कलवार समाज के बियाहुत लोग प्राचीन काल से “बान” के रूप में व्यवहार में लेते हैं | आज का विज्ञान कहता है निरोग, सर्वगुण सम्पन्न वंशवृद्धि के ना होने का एक कारण DNA का मिलना या एक जैसा होना भी हो सकता है | इस बात को हमारे पूर्वजों ने बखूबी समझा और “बान मिलान” का नियम विवाह निश्चित करने के पहले आवश्यक किया |
बान के ग्रुप :
- मूल बान : पिताजी के परिवार का
- दादीआउरा/अजिऔरा : दादी के परिवार का
- सास के नहियर: सास के माँ के परिवार का
- नानीआउरा : नानी/आजी के घर का मूल बान
आप इन सभी के नामों को ध्यान दे देखेंगे तो समझ आता है कि जिस परिवाए से हम विवाह सम्बन्ध करने जा रहें है उस का बान दुसरे परिवार के पिता जी के दो पुस्त तथा माँ के परिवार के दो पुस्त तक बान मिलना नहीं चाहिए | यह DNA matching से भी ज्यादा परिस्कृत और Syntific है |
प्रयोग में आने वाले कुछ और शब्दों के अर्थ : गोत्र, बान, कुंडली गुण मिलान
गोत्र = कश्यप अर्थार्त मुनी कश्यप के संतान
बान = वंशवृक्ष, कुल खानदान निवास आधारित नाम कुंडली + गुण = ग्रह तथा गणना के अनुसार