मकर संक्रांति : कलवार समाज -हिन्दू समाज द्वारा मनाए जाने वाले पर्व की जानकारी तथा कथा

संक्रांति पर्व के समय विभिन्न क्षेत्रों में लोक कथाएं प्रचलित हैं जो इस त्योहार के महत्व को बताती हैं। ये कथाएं विभिन्न प्राचीन ग्रंथों, लोकपरंपराओं, और भारतीय धरोहर में मिलती हैं। यहां कुछ प्रमुख कथाएं हैं:

  1. मकर संक्रांति कथा:
  • एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, सूर्य देव का पुत्र शनि देव अपने पिता के साथ एक बार विदेह राजा के यज्ञ में शामिल होने गए थे। यज्ञ के समय शनि देव ने अपने पिता को तंत्र में पकड़ लिया था, जिससे सूर्य देव को बहुतंत्र में दुख हुआ। उन्होंने शनि को माफ किया, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि शनि देव कभी भी उत्तरायण के समय मकर राशि में न रहेंगे, अन्यथा उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए, मकर संक्रांति का दिन शनि देव उत्तरायण के समय मकर राशि में नहीं रहते हैं।
  • उत्तरायण कथा:
  • एक और कथा के अनुसार, सूर्य देव उत्तरायण के समय देवताओं के साथ कुरुक्षेत्र में स्नान के लिए गए थे। उनके साथ गए विभिन्न देवताएं भी वहां स्नान करने आई थीं। इस स्नान के बाद सूर्य देव को उत्तरायण की प्राप्ति हुई और वे अपने नियमित मार्ग पर चलकर मनुष्यों को उपहार देने के लिए यहीं रुके।
  • माघी गंगा स्नान:
  • इस कथा के अनुसार, माघ महीने के संक्रांति के दिन गंगा नदी में स्नान करने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति करता है। इसलिए, लोग इस दिन गंगा नदी में स्नान करते हैं और पितृ तर्पण के लिए तिल, ऊबड़, और गंगा जल का दान करते हैं।

ये कथाएं संक्रांति पर्व के महत्वपूर्ण पहलुओं को बताती हैं और इसे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से दर्शाती हैं।

मकर संक्रांति के दिन कई घटनाएं घटी थीं: 

  • इस दिन गंगा जी, भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं.
  • इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर उनके सिरों को मंदार पर्वत में दबाकर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी.
  • इस दिन महाभारत के भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को चुना था.
  • इस दिन सूर्य देव के रथ से ये खर निकल जाते हैं और फिर सातों घोड़े सूर्य देव के रथ में जुड़ जाते हैं. इससे सूर्य देव का वेग और प्रभाव बढ़ जाता है.
  • इस दिन से शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं और मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है.
  • इस दिन दान-पुण्य जैसे कार्यों का विशेष महत्व माना जाता है.
  • इस दिन खिचड़ी बनाने और खाने का खास महत्व होता है. इसी कारण इस पर्व को कई जगहों पर खिचड़ी का पर्व भी कहा जाता है.
  • ऐसी मान्यता है कि इसी त्यौहार पर सूर्य देव अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए आते हैं.

मकर संक्रांति को विभिन्न राज्यों में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है और पूजन बिधियाँ भी विभिन्न हो सकती हैं. यहां असम, बिहार, और उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को मनाने के कुछ सामान्य परंपराएं हैं:

असम (Bhogali Bihu):

भोगली बिहू या माघ बिहू, असम में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है. यह फ़सल कटाई के मौसम के अंत का प्रतीक है. यह त्योहार 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है. 

मेज़ी :-भोगली बिहू में लोग खेती की ज़मीन पर बांस और पुआल से मेज़ी बनाते हैं. दूसरे दिन नदी या तालाब में नहाकर मेज़ी को जलाते हैं. मेज़ी की परिक्रमा कर गांव और परिवार की खुशहाली के लिए अग्नि देव से प्रार्थना करते हैं. 

उरुका‘:- भोगली बिहू में लोग दावतें देते हैं और अलाव को जलाकर मनाते हैं. रात में लोग अलाव के आस-पास इकट्ठा होकर कई तरह के पकवान बनाते हैं, जिसे ‘उरुका’ कहते हैं. मेज़ी में भोजन खाया जाता है और अगली सुबह इसे जला दिया जाता है. 

खान-पान गायन : भोगली बिहू में लोग नारियल के लड्डू, तिल पीठा, घिला पीठा, मच्छी पीतिका, और बेगेना खार जैसे पकवान बनाते हैं. मान्यता है कि बिहू पर्व के दौरान ढोल बजाने से इंद्र देव प्रसन्न होते हैं और बारिश के कारण अच्छी खेती होती है. 

बिहू – लोकनृत्य:- भोगली बिहू में लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए विभिन्न वस्तुएं भी मेज़ी में भेंट चढ़ाते हैं. बिहू उत्सव के दौरान लोग अपनी खुशी का इज़हार करने के लिए लोकनृत्य भी करते हैं.

बिहार:

  1. खेतों में बोया  हुआ अनाज और तिल का पूजन: बिहार में इस दिन लोग अपने खेतों में बोना हुआ अनाज और तिल का पूजन करते हैं। यह एक प्रकृति पूजा है जिसमें फसलों की देवी को पूजा जाता है।
  2. गंगा स्नान एवं तिल-गुड़ खाना: सुबह सुबह स्नान कर लोग इस दिन तिल और गुड़ का सेवन करते हैं, जिसे खासकर “तिलवा” कहा जाता है। इस दिन तिल के तिलवा के आलवे चुडा, मूढ़ी, बादाम की चिकि इत्यादि बनता है ।
  3. छठ पूजा: छठ पूजा बिहार में एक महत्वपूर्ण परंपरा है और कुछ परिवार इसे मकर संक्रांति के दिन मनाते हैं।
  4. खिचड़ी : अमूनन सभी परिवार में रात्री भोजन के रूप में खिचड़ी, पापड़ , आचार, दही खाया जाता है । गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा त्रेतायुगीन मानी जाती है। कहा जाता है खिचड़ी पाक कला इसी मंदिर से आरम्भ हुई ।
  5. दही चूड़ा – दिन में चूल्हा नहीं जलता है और सभी लोग दही चूड़ा खाते हैं । आलू सेम गोभी का एक रात पहले ही ताजा आचार बना कर उस दिन खाया जाता है ।
  6. कई जगहों पे “पतंगबाजी’ भी की जाति है ।

उत्तर प्रदेश:

  1. स्नान और दान: उत्तर प्रदेश में लोग सूर्योदय के समय स्नान करते हैं और गंगा, यमुना, या अन्य तीर्थ स्थलों में जाकर दान करते हैं।
  2. खिचड़ी बनाना और खाना: खिचड़ी उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति के दिन बनाई जाती है और इसे दान में दिया जाता है। इसके बाद खिचड़ी को खाया जाता है।
  3. गङ्गा स्नान: कुछ स्थानों पर लोग गंगा स्नान करने के लिए गंगा घाटों पर जाते हैं और वहां पूजा अर्चना करते हैं।

इन प्रदेशों में मकर संक्रांति को अपनी विशेष परंपराओं और स्थानीय सांस्कृतिक भागों के अनुसार मनाया जाता है।

मकर संक्रांति का महत्व हिन्दू समाज में काफी बड़ा है और इसे विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है। इस त्योहार का महत्व विभिन्न कारणों से है:

  1. सूर्योत्तरायण का समय: मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जिससे सूर्य की किरणें पृथ्वी पर सीधे पड़ती हैं। इससे शीतकाल का समाप्त होता है और उष्णकाल शुरू होता है।
  2. धार्मिक आधार: मकर संक्रांति हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पौराणिक घटना से जुड़ा है, जिसमें सूर्यदेव का मकर राशि में प्रवेश होना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
  3. कृषि सम्बंधित: इस दिन को अनेक स्थानों पर गन्ना, तिल, गहूँ, चावल, मूंगफली इत्यादि की कटाई का समय माना जाता है। यह एक प्रकृति पूजा भी होती है जिसमें फसलों की पूजा की जाती है।
  4. भौतिक गतिविधियां: इस दिन को लोग विभिन्न स्थानों पर तीर्थयात्रा करते हैं और स्नान करते हैं, जिससे मानव शरीर को शुद्धि मिलती है।
  5. सांस्कृतिक आधार: मकर संक्रांति के दिन लोग विभिन्न सांस्कृतिक क्रियाएं करते हैं, जैसे कि पुणे की कास्टीस, गुजरात की उत्तरायण मेला, तमिलनाडु की पोंगल मेला इत्यादि।

इस रूप में, मकर संक्रांति हिन्दू समाज में एक महत्वपूर्ण और उत्सवपूर्ण दिन है जो विभिन्न आध्यात्मिक, कृषि, और सांस्कृतिक परंपराओं के साथ जुड़ा होता है।

संक्रांति का अर्थ
जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना क्रान्तिचक्र कहलाता है। इस परिधि चक्र को बांटकर बारह राशियां बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रान्ति कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रान्ति कहते हैं। 12 राशियां होने से सालभर में 12 संक्रांतियां मनाई जाती हैं।

मकर संक्रांति – एक ऋतुपर्व
सूर्य के राशि परिवर्तन से दो-दो माह में ऋतु बदलती है। मकर संक्रांति एक ऋतु पर्व है। यह दो ऋतुओं का संधिकाल है। यानी इस समय एक ऋतु खत्म होती है और दूसरी शुरू होती है। मकर संक्रांति सूर्य के दिनों यानी गर्मी के आगमन का प्रतीक पर्व है। ये त्योहार शीत ऋतु के खत्म होने और वसंत ऋतु के शुरुआत की सूचना देता है। इस दिन शीत ऋतु होने के कारण खिचड़ी और तिल-गुड़ का सेवन किया जाता है। यह अन्न शीत ऋतु में हितकर होता है।

संपादक Manoj Kumar Shah

इस पोस्ट को अपने समाजबंधु के साथ जरूर शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

समाजबंधु के सदस्य बने
X
अब आप समाजबंधु के सदस्य भी बन सकते हैं
हम 24 घंटे के भीतर आपको जवाब देने की पूरी कोशिश करेंगे
<
संपादक बने
भाव-विचार और अनुभवों के आदान-प्रदान से सामाजिकता की भावना का संचार होता है।
>
क्या आप समाजबंधु संपादक बनना चाहते हैं ?
वैवाहिकी सदस्य बने
यह कलवार | कलार | कलाल समाज के लडकों और लड़कीयो के रिश्ते तय करने में सहयोग हेतु बनाया गया है।
>
नमस्ते,
समाजबंधु विवाह मॅट्रिमोनी में आपका स्वागत है।
धन्यवाद।
मनोज कुमार शाह