बलभद्र मनावन : बलभद्र पूजा और एक परम्परा है जिसे विवाह के पहले व्याहुत कलवार द्वारा मनाया जाता है।

कथा : बात महाभारत के दिनों की है, दुर्योधन अपने गुरु अथार्त बलराम जी को अपना पराक्रम दिखा उन्हें खुश कर बहन सुभद्रा से विवाह करवाने का वचन ले लिया, पर यह बात श्री कृष्ण को पसंद न थी ।  श्री कृष्ण सुभद्रा का विवाह अर्जुन से करवाना चाहते थे । अतः उन्होंने सुभद्रा के अपहरण की योजना बनाई । इस योजना तहत सुभद्रा ने रथ चलाया और अर्जुन पीछे बैठ गए, और राजमहल से भाग गए । जब इसकी सूचना बलभद्र जी को मिली तो वे बहुत नाराज हुए और अर्जुन को सजा देने के लिए श्रीकृष्ण को साथ लेने पहुंचे । उस समय श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया कि सुभद्रा का अपहरण नहीं हुआ है अपितु “हमारी बहन अर्जुन से प्रेम करती हैं और वह रथ चला कर अर्जुन का अपहरण कर के ले गई है” अर्जुन अपराधी नहीं हैं तथा वह सुभद्रा के लिए सुपात्र भी है । इस तरह बलभद्र जी को बहुत अनुनय विनय “मनावान” कर के उन्हें मनाया गया । बलभद्र जी मान गए और विवाह का आशीष दिया । तभी से कलवार जाती के व्यहूत कुड़ी (उपजाति) में बलभद्र मनावन की परंपरा चली आ रही है इस विधि को मान कर आज भी व्याहुत लोगों में विवाह सम्पन्न होते हैं ।   

पूजा तथा मनावान की विधि : इस रस्म को मानाने के लिए सर्वप्रथम कुम्हार के घर से बलराम जी (बलभद्र जी ) की एक मिट्टी की छोटी प्रतिमा लाई जाती है । इस प्रतिमा को जौ से सजाया जाता है । बाजे गाजे के साथ इस प्रतिमा को घर की महिलाएं ले कर आती हैं इसे “श्री बलभद्र लाना” कहतें हैं । उपवास रह कर अति शुद्धता और भक्ति के साथ पूजा स्थान पर कुल देवता बलभद्र जी स्थान दिया जाता है और पूजा की जाती है । छोटे छोटे चुकिया कलश जो ढक्कन के साथ होता है उनके सम्मुख रखा जाता है । इन पात्रों को चनादाल तथा शुद्ध घी से बने मीठा बुंदिया से भरा जाता है और उसे ढक दिया जाता है । एक पात्र में चीनी का सरबत भी भरा जाता है । एक पत्तल में पान का बीड़ा, और दांत सफा करने हेतु खरिक्का रखा जाता है । श्री बलभद्र भगवान जी को भोग लगाने के लिए “कच्ची रसोई” जैसे  भात, दाल, बजका, बरी, अदौरी, फुलौरा (एक तरह की खाश मिठाई), सब्जी, इत्यादि बनाया जाता है और एक थाली में भोग लगता है । इस प्रसाद को उसी थाली में मिला कर अपने कुल के सदस्यों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है !

 यह पूजा 5 पुरुष जो कि अपने कुल के होते हैं वे करतें हैं । ये पांचो व्यक्ति उस थाली को पकड़ कर एक दुसरे से प्रश्न-उत्तर करतें हैं (5 बार) ये प्रश्न उत्तर निम्नलिखित हैं :

 प्रश्न होता है “बलभद्र जी उठालें ? ” उत्तर सभी देतें हैं “ हाँ उठलें !”

 प्रश्न होता है “ बलभद्र जी मुहँ धोवलें ?” उत्तर दिया जाता है “ हाँ धोवलें !”

 प्रश्न होता है “बलभद्र जी खाना खइलन ?” तब उत्तर होता है “हाँ खइलन !”

 प्रश्न होता है “बलभद्र जी कुल्ला कइलन ?” उत्तर सबकोई मिलकर स्वांग के साथ देतें हैं “हाँ कुल्ला कइलन!” 

 प्रश्न किया जाता है “बलभद्र पान खइलन” सभी पान खाने स्वांग के साथ कहतें हैं “हाँ खइलन!”

 इस मनवान की परम्परा को कलवार समाज के व्याहुत वर्ग मानते आया है । इसे सम्पन्न करने के बाद समझा जाता है कि बलभद्रा जी  अब मान गएँ हैं,  अतः उनके आशीर्वाद से विवाह निर्विघ्न रूप से सम्पन्न होगा ।

प्रतिमा विसर्जन: विवाह होने तक बलभद्र जी के प्रतिमा को पूजा घर में रखा जाता है । “चौठारी”  (दुलहा-दुलहिन के हांथों के मंगल बंधनवार को खोलने तथा मंदिरों में दर्शन वाले दिन )  इस प्रतिमा को बड़े ही श्रद्धा, सम्मान और प्यार से नजदीक के नदी में विसर्जित कर दिया जाता है ।

 रचित : मनोज कुमार शाह : तिनसुकिया : असम : फ़ोन 9435267008

मोतीहारी, पूर्वी चंपारण में विवाह के समय बनाएजाने वाला बलभद्र जी की परंपरागत प्रतिरूप

सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल

संपादक श्री मनोज कुमार शाह

मैं मनोज कुमार शाह, असम के तिनसुकिया शहर से हूँ। वर्तमान में समाज सेवा हेतु मैं कलवार समाज जिला तिनसुकिया का जिला अध्यक्ष के रूप में सेवारत हूँ। आपने कलवार, कलाल, कलाल समाज को सोशल मीडिया में प्रथम स्थान दिलाते हुए मैं वेबसाइट www.samajbandhu.com का संचालन करता हूँ।

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मनोज कुमार शाह