कलवार समाज के कुलदेवता श्री बलभद्रजी

ॐ जय बलभद्राय नमो नमः

उत्तर पूर्वी भारत, असम, पश्चिम बंगाल,  झारखण्ड,  उड़ीसा,  बिहार,  उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश, नेपाल, भूटान …. आदि जगहों पर रहने वाले कलवार समाज के के लोगों के कुलदेवता श्री बलभद्र जी हैं, जिन्हें बलदेव,  बलराम,  हलायुध जैसे नामों से भी पुकारा जाता है।

आप विष्णुअवतार श्री कृष्ण के बड़े भाई हैं और आपको शेषावतार भी कहा जाता है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड के कुछ हिस्से में आपकी पूजा “हलषष्ठी” के रुप में की जाती है । गदा और हल आपके प्रिय आयुध हैं। आप को नीला वस्त्र अति प्रिय है, इसलिए भी आपको नीलाम्बर कहा जाता है। आपका विवाह रेवती से हुआ । आपकी पुत्री वत्सला (श्रीरेखा) की शादी अर्जुन पुत्र अभिमन्यु से हुई। आपके दो पुत्र क्रमशः रोम्हाशार्ण तथा उग्रश्रवा थे।

देवकी और वासुदेव के सातवें पुत्र के रूप में आपका अवतरण होना था जिसे श्री हरि ने योगमाया से रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया,  इसलिए आपको “संकर्षण” के नाम से भी जाना जाता है।

आपकी शिक्षा-दीक्षा महिर्षि सांदीपनि से आज के उज्जैन नगर में हुई। आपको गदा युद्ध का सर्वष्रेष्ठ योद्धा के रूप में भी जाना जाता है। महाभारत युद्ध में आप तटस्थ होकर तीर्थयात्रा के लिये चले गये। यदुवंश के उपसंहार के बाद समुद्र तट पर आसन लगाकर अपनी लीला का संवरण किया।

श्रीमद्भागवत की कथाएँ शेषावतार के रूप व शौर्य की सुन्दर साक्षी हैं। दुर्योधन और भीम दोनों ने आपसे शिक्षा प्राप्त की। आपको न्याय के देवता के रूप में भी प्रतिष्ठा हासिल है। इसलिए जब भीम ने महाभारत के युद्ध में अनैतिक तरीके से दुर्योधन का वध कर दिया तो आप स्वयं ही गदा लेकर भीम को दण्डित करने निकल पड़े, परंतु कृष्ण की कूटनीति के कारण आपने अपने क्रोध को पी लिया।

दाऊजी या बलराम जी का मन्दिर मथुरा से 21 कि.मी. दूरी पर एटा-मथुरा मार्ग के मध्य में स्थित है। श्री दाऊजी की मूर्ति देवालय में पूर्वाभिमुख 2 फुट ऊँचे संगमरमर के सिंहासन पर स्थापित है। पुरातत्त्ववेत्ताओं का मत है यह मूर्ति पूर्व कुषाण कालीन है जिसका निर्माण काल 2 सहस्र वर्ष या इससे अधिक होना चाहिये। दाऊ जी की कुछ अति प्राचीन शुंग कालीन मूर्तियाँ मथुरा और ग्वालियर के क्षेत्र से प्राप्त हुई हैं। कुषाणकालीन बलराम की मूर्तियों में कुछ व्यूह मूर्तियाँ अर्थात् विष्णु के समान चतुर्भुज प्रतिमाएँ हैं और कुछ उनके शेष से संबंधित होने की पृष्ठभूमि पर बनाई गई हैं। ऐसी मूर्तियों में वे द्विभुज हैं और उनका मस्तक मांगलिक चिह्नों से शोभित सर्पफणों से अलंकृत है।

संकर्षण – गर्भस्थ बलराम का संकर्षण किया गया था, इसीलिए इनका नाम ‘संकर्षण’ हुआ था।</p>

अनन्त – वेदों के अनुसार आपका कभी अंत नहीं होता, इसीलिए भी आप ‘अनन्त’ कहे गये हैं।

बलदेव – बल की अधिकता होने के कारन आपको ‘बलदेव’ कहते हैं।

हली या हलायुध – हल धारण करने के कारन आपका एक नाम ‘हली’ हुआ है।

नीलाम्बर – नील रंग का वस्त्र धारण करने से इन्हें नीलाम्बर या ‘शितिवासा’  भी कहा गया है।

मुसली – मूसल को आयुध बनाकर रखने के कारण ‘मुसली’ कहे गये हैं।

रेवतीरमण – रेवती के साथ इनका विवाह हुआ था, इसीलिए ये साक्षात ‘रेवतीरमण’ है

रौहिणेय – रोहिणी के गर्भ में वास करने से महाबुद्धिमान संकर्षण को ‘रौहिणेय’ कहा गया है।

बलभद्र या बलदेव – बलबानों में सर्वश्रेष्ठ होने के कारण ही आपको ‘बलभद्र, बलदेव या बलराम ‘ कहा जाता है।

दाऊ – श्री कृष्ण के अग्रज होने के कारण आप का एक नाम श्री दाऊ जी भी हैं।

संपादक Manoj Kumar Shah

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