🔱 बलभद्र मनावन
(कलवार समाज की व्याहूत उपजाति द्वारा निभाई जाने वाली एक विशिष्ट विवाहपूर्वीय पूजा परंपरा)
🌿 परंपरा की पवित्र पृष्ठभूमि
कलवार समाज की व्याहूत उपजाति में विवाह से पूर्व “बलभद्र मनावन” नामक एक पावन परंपरा निभाई जाती है, जो केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं बल्कि आस्था, कुल मर्यादा और पारिवारिक मंगल कामना की गहन अभिव्यक्ति है।
इस परंपरा की प्रेरणा महाभारत काल की एक सजीव कथा से आती है।
📖 कथा — बलभद्र जी को मनाने का प्रसंग
महाभारत काल में दुर्योधन, भगवान बलराम जी का प्रिय शिष्य था। उसने बलराम जी से उनकी बहन सुभद्रा के साथ विवाह का वचन प्राप्त किया।
बलराम जी ने इसे स्वीकार कर लिया, लेकिन श्रीकृष्ण इससे सहमत नहीं थे, क्योंकि सुभद्रा अर्जुन से प्रेम करती थीं।
श्रीकृष्ण ने योजना बनाई — सुभद्रा ने स्वयं रथ चलाया, अर्जुन पीछे बैठे, और वे महल से निकल गए। बलराम जी को जब यह पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने अर्जुन को दंड देने का विचार किया, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें शांतिपूर्वक समझाया:
“भैया, हमारी बहन ने स्वयं अर्जुन को रथ पर बिठाकर साथ ले गई हैं। यह अपहरण नहीं, प्रेम है।”
बहुत अनुनय-विनय (मनावन) के बाद बलराम जी मान गए और विवाह को आशीर्वाद दिया। इसी प्रसंग की स्मृति में यह परंपरा आज तक निभाई जाती है — बलराम जी को पूजा के माध्यम से “मनाकर” विवाह की स्वीकृति लेना।
🪔 पूजा विधि — परंपरा की जीवंत प्रस्तुति
1. मिट्टी की प्रतिमा और उसका स्वरूप
- विवाह से पूर्व कुम्हार से बलभद्र जी की मिट्टी की मूर्ति लायी जाती है।
- मूर्ति के एक हाथ में हल, दूसरे में मुसल होता है — जो उनके कृषक और बलवान स्वरूप का प्रतीक है।
- सिर पर छत्र जैसा एक ढांचा होता है, जिसे भगवान विष्णु के शेषनाग का प्रतीक माना जाता है।
- मान्यता है कि बलभद्र जी स्वयं शेषनाग के अवतार हैं — जो भगवान विष्णु के विश्राम के आधार हैं।
2. जौ से अलंकृत मूर्ति
- कुम्हार अपने हाँथ से मूर्ति को रूप देता है और जौ के दाने मूर्ति में खोंसकर अलंकरण करता है।
- कुम्हार पुचटा है की आप को बलभद्र जी की muri maanaw (khade ) स्वरूप चाहिए या गणेश स्वरूप (Baithe)
- यह बल, पवित्रता और आस्था का प्रतीक है।
3. सिरी जी — बैल के प्रतीक
- मूर्ति के दोनों ओर रखे जाते हैं दो “सिरी जी” — जो बैल का प्रतीक हैं और कृषि जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं।
4. मिट्टी के कलश और ढक्कन
- छोटे-छोटे मिट्टी के कलश 5, 7 या 11 और सभी ढक्कन के साथ भी कुम्हार से लाए जाते हैं।
- इनमें रखा जाता है —
- चना दाल
- घी वाली बुंदिया
- पान बीड़ा
- खरिक्का
- शरबत आदि।
🍲 कच्ची रसोई और भोग
पूजा के लिए कच्ची रसोई बनाई जाती है, जिसमें भात, दाल, बरी, बजका, अदौरी, फुलौरा, पापड़, हरी सब्जियाँ आदि शामिल होते हैं।
इन सभी पकवानों को एक थाली में सजाकर भोग रूप में भगवान बलभद्र जी को अर्पित किया जाता है।
इसके बाद इन सभी को एक साथ मिलाकर प्रसाद बनाया जाता है।
“समाज में प्रचलित मान्यता यही है कि यह पावन प्रसाद केवल उसी परिवार के सदस्यों को प्रदान किया जाए , जहाँ विवाह सम्पन्न होना होता है।”
🙏 मनावन की विशेष रस्म — पाँच प्रश्नों का उत्तर
पाँच पुरुष मिलकर थाली को पकड़ते हैं और बलराम जी की सेवा का अभिनय करते हैं।
प्रश्न और उत्तर की यह परंपरा हर्ष और श्रद्धा से भरी होती है:
- बलभद्र जी उठलें? — हाँ उठलें!
- मुँह धोवलें? — हाँ धोवलें!
- खाना खइलन? — हाँ खइलन!
- कुल्ला कइलन? — हाँ कइलन!
- पान खइलन? — हाँ खइलन!
यह रस्म “मनावन” कहलाती है, और इसके पश्चात यह मान्यता होती है कि बलराम जी अब प्रसन्न हो गए हैं।
🌊 विसर्जन — चौठारी के दिन
विवाह के बाद, “चौठारी” के दिन (मंदिर दर्शन और मंगल बंधन खोलने का दिन)
बलभद्र जी की प्रतिमा को श्रद्धा और प्रेम से निकटवर्ती नदी या सरोवर में विसर्जित कर दिया जाता है।
🌾 जौ का महत्व — प्रतीकात्मकता और भक्ति
- अलंकरण के रूप में प्रयोग
- बल और वीरता का प्रतीक
- शुद्धता, सादगी और सात्विकता का प्रतीक
- कृषक जीवन और परंपरा से जुड़ाव
- जौ — वैदिक काल का पूजनीय अन्न
- मूर्ति को जीवन्त रूप देने वाला पवित्र प्रतीक
✨ निष्कर्ष
‘बलभद्र मनावन’ परंपरा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर है जो प्रेम, परंपरा, आशीर्वाद, कृषक संस्कृति और कुल मर्यादा को एक सूत्र में बांधती है।
इस परंपरा को निभाकर व्याहूत समाज यह विश्वास करता है कि बलराम जी की कृपा से विवाह निर्विघ्न, मंगलमय और शुभफलदायक होगा।
रचित : मनोज कुमार शाह : तिनसुकिया : असम : फ़ोन 9435267008
मोतीहारी, पूर्वी चंपारण में विवाह के समय बनाएजाने वाला बलभद्र जी की परंपरागत प्रतिरूप


“श्री शशि भूषण गुप्ता जी के सुपुत्र के शुभ विवाह (2025, पटना) के पावन अवसर पर भगवान बलभद्र जी की भव्य एवं दर्शनीय प्रतिमा की स्थापना की गई थी, जो सभी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बनी।”
तिनसुकिया वर्ष 2024 असम में मनोज कुमार शाह के सुपुत्र श्री सुमीत शाह जी के विवाह के अवसर पर बलभद्र जी पधारे .



समस्तीपुर के श्री रूपेश ब्याहूत जी से प्राप्त “बलभद्र मनावन” में बनाए गए भगवान बलभद्र जी का एक मनोरम स्वरूप


सिलीगुड़ी : बलभद्र जी पधारे बिजय ब्याहुत जी के घर
