उड़ीसा, जिला बालासोर के गुड में एक प्रसिद्ध स्थल है, यहाँ भगवान बलराम जी का विख्यात मंदिर है। वहाँ प्राचीनकाल से पूजा की जाती है ।
वहाँ के बताए गए इतिहास के अनुसार, गुड में एक प्राचीन तालाब था। उस तालाब में एक गोपालक को तैरते हुए एक मूर्ति रूप-स्वरूप पत्थर नजर आया । तैरते हुई मूर्ति स्वरूप पत्थर देख कर उस गोपालक को आचार्य हुआ और वह उसे बलराम जी की मूर्ति समझ कर उसे पानी से बाहर निकालकर और पीपल के पेड़ के नीचे पूजा किया, वह जब भी पूजा करता वह मूर्ति फिर से पोखरा में चली जाति थी और इस तरह बार बार पानी से बाहर निकाल कर पूजा करने के बाद भी वह पानी के अंदर जा कर तैरने लगती यह देख कर उसे बहुत ही आश्चर्य हुआ ।
यह बात पूरे गावं में फैल गई इसी बीच एक रात, पड़ोसी क्षेत्र के राजा को भगवान बलभद्र के इस स्वरूप के होने का स्वप्न आया। तब वह राजा अपने जुलूस के साथ उस मूर्ति को ले जाने आया और तालाब तक पहुँचा। पर वहाँ के स्थानीय राजा ने उसको मूर्ति देने से इनकार कर दिया। दीर्घ बहस के बाद, यह तय हुआ कि मूर्ति उस राजा को जाएगी जिसे भगवान बलभद्र का स्वप्न आएगा। भगवान खुद दो लड़ रहे राजाओं में से एक के सपने में आए और उसे बताया, “अगर आप मेरे प्रति श्रद्धा रखते हैं, तो आपको उस स्थान पर जाइए जहाँ स्थापित कर मेरे पूजा आप लोग करना चाहते हैं” बाद में, दोनों राजा ने भगवान के निर्देश का पालन किया।
भगवान बलभद्र के मूर्ति स्वरूप उस पत्थर को एक बैल गाड़ी से ‘गुड’ नामक स्थान तक लाया जाता है । इस तरह, एक छप्परदार घर में तुलसी के पौधे के मंच पर, राजा ने भगवान बलभद्र को विराजमान किया।
गुड की मिट्टी सचमुच भाग्यशाली है, जहाँ भगवान बलभद्र अपने भाई और बहन के साथ विराजमान हैं। कहा जाता है यदि कोई भक्त पुरी मंदिर नहीं पहुँच सकता है, तो वह बालासोर में इस मंदिर में पवित्र मूर्तियों का दर्शन कर सकता है। धन्य हैं वे जो इस शुभ भूमि पर पैदा हुए हैं, जहाँ भगवान बलभद्र जी विराजते हैं ।