हैहयवंश का होली से है सम्बन्ध!

हैहयवंश 🏇🏿का होली 🔥से है सम्बन्ध!
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वॉक्सन्यूज..
👉मारी राक्षस के मरने से है होली का संबंध !
👉 मारी राक्षस को मारने के कारण ही भगवान सहस्त्रार्जुन जी का नाम मारी मद भंञ्जक पड़ा !
👉 फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फैला रहा था महामारी !
👉इसीलिए होली से आठ दिन पहले शुभ कार्य पर विराम लग जाता है ..
यानी
👉होलाष्टक लग जाते हैं!
👉 फाल्गुनी पूर्णिमा के प्रदोष काल मे मारी राक्षस को होली जलाकर किया था भस्म..
👉 इसीलिए भगवान सहस्त्रार्जुन जी के राज्य काल से होलिका जलाने का प्रचलन आज तक है!
👉 मारी नाम का राक्षस फैलाता था महामारी !
👉 मारी राक्षस के मरने की खुशी में अगले दिन रंगो का उत्सव मनाया जाता है!
👉आपब ॠषि ने किया होली का शीतली करण..
👉शीतला माता की भी हुई पूजा…
👉शरीर से विषैलो पदार्थो के शमन को कराया आपब ॠषि ने बासी भोजन… बासौडा!
👉बूढा वसौडा या बूढे बाबू ही हमारे कुळशिरोमणि सहस्रबाहू भगबान् तो नही?
जो कालान्तर ने अपभ्रन्श हो गया!
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👉प्रसंग… प्रिय बन्धुओ होली के त्यौहार का हैहयवंश से पौराणिक संबन्ध जुडा हुआ है! कार्त्तबीर्य अर्जुनीयम् (1924) प्रकाशित इस पुस्तक मे भगबान् सहस्रार्जुन जी द्वारा मारी नाम के राक्षस का बध करने का लेख पाया जाता है जिसमे लिखा था कि… एक वार की वात है अग्नि देब एक व्राह्मण भिक्षुक का वेष धरकर भगबान् सहस्रार्जुन जी की सभा में पहुँचे ! उन्होने भगबान् सहस्रार्जुन जी जी कहा महाराज | मै कई दिनो से भूखा हूँ कृप्या मेरे उदर की क्षुधा को शान्त करे!
भगबान् बोले हे विप्र देब मेरे राज्य मे कोई भूखा नही रहता जितना भोजन करना है करलो! उन्होने अपने मन्त्री को आदेशित किया कि इस व्राह्मण को जब तक भोजन कराया जाये जब तक कि इसके उदर पूर्ति नही हो जाती!
ब्राह्मण को भोजन कराने राज्य की रसोई गृह ले जाया गया जहां उसे भरपूर भोजन दिया गया यहां तक कि भोजनशाला का सारा भोजन समाप्त हो गया परन्तु बह व्राह्मण की उदर पूर्ति नही हुई!
उस ब्राह्मण को महाराज सहस्रार्जुन जी के समक्ष उपस्थित किया गया!
भगबान् सहस्रार्जुन जी बोले — हे विप्र | आप कौन है? अग्निदेव अपने बास्तबिक स्बरूप ग्रहण कर के बोले…मै अग्नि देव हूं कई वर्षो से भूखा हूँ क्यो कि आपके सप्तद्वीपो सहित किसी भी राज्य मे कही पर भी अग्नि कांड नही होता ना ही किसी को अग्नि पीडा ही होती है जहां भी मै अकिंचन प्रयास करता हूँ आप बही पर अपनी अव्याहत गति से पहुंच कर मेघ वन वर्षा कर देते हैं! हे — पर्जन्य. ! अब आप ही बतायें मै अपने उदर की पूर्ति किस स्थान पर से करूँ? आप कहे तो आपके प्रिय आखेट स्थल सहस्रअरण्यपुर (सहारनपुर) को जला कर क्षुधा शान्त कर लूँ?
नही नही…. ऐसा नही हो सकता!
भगबान सहस्रार्जुन जी बोले!
आप अरण्य जलाओगे तो पर्यावरण का असन्तुलन होकर संकट आयेगा ही ! असंख्य पशु -पक्षी की हत्या भी होगी! नही- नही मै पाप का भागी नही वन सकता….. मुझे क्षमा करे विप्र (अग्नि) देव !
अग्नि देव बोले — राजन मै कहाँ जाऊँ? जिससे कि मेरे उदर की क्षुधा पूर्ति हो!
भगबान् सहस्रार्जुन जी बोले — हे अग्नि देव हम आपके उदर की क्षुधा पूर्ति अवश्य ही करेगे… समय की प्रतीक्षा करे..!
समय बहुत वलबान होता है मै आपकी उदर पूर्ति के लिये कुछ समय चाहता हूँ!
अग्निदेव बोले — ठीक है राजन! मै समय की प्रतीक्षा करूगां!
ऐसा कहकर अग्निदेव चल दिये!
कालचक्र अपनी गति से चलता रहा!
एकबार की बात….
मारी मद नाम का एक राक्षस पृथ्बी पर महामारी फैलाने आया बह मायाबी राक्षस जहां भी जाता बही महामारी फैलाकर लोगो की हत्या किया करता था उसके कारण भगबान् सहस्रार्जुन जी की प्रजा रोगग्रस्त होकर काल के गाल मे समाने लगी!
ये वात भगबान सहस्रार्जुन जी को पता चली तो बे बहुत ही चिंतित हुए!
उन्होने अपने मन्त्रियो, राजगुरूओ, की सभा बुलायी जिसमे महिष्मति नगरी के रक्षक अग्निदेव को भी आमन्त्रित किया गया!
सभा मे गर्ग मुनि बोले… महाराज ! ये मायाबी राक्षस है जो भी इसका सामना करेगा वह रूग्णता को प्राप्त हो अशक्त हो जायेगा, इसीलिये इस मायाबी राक्षस से युद्घ करना और जीतना बडा ही कठिन कार्य है इससे तो योगबिधा के बल पर ही युद्ध जीता जा सकता है और महाराज आप योगविधा के वडे ही ज्ञाता है!
भगबान् सहस्रार्जुन जी ने सभी राजगुरूओ, ॠषियो, मन्त्रियो, और अग्निदेव आदि से विचार विमर्श किया! और एक योजना तैयार की! अगले दिन पूर्बाफाल्गुनी नक्षत्र की पूर्णिमा को प्रातः भगबान् सहस्रार्जुन जी ने अग्नि देव का तान्त्रिक विधि से पूजन किया. जिससे कि वे और अधिक बल प्राप्त कर सके! मारी राक्षस महिष्मति नगरी मे घुसता इससे पूर्ब ही पर्बतो से घिरे घने अरण्य के वीच रिक्त पडी भूमि को ही भगबान् सहस्रार्जुन जी ने रणक्षेत्र वना दिया! दोनो ओर से घन घोर युद्ध होने लगा, दोनो ओर से घनघोर युद्ध होने लगा! मायाबी मारी राक्षस ने कई बार माया का प्रयोग किया परन्तु योगविधा के परमज्ञाता भगबान् सहस्रार्जुन जी पर कोई प्रभाव नही पडा! सारा दिन युद्ध मे व्यतीत हो गया ! सूर्यास्त के उपरान्त प्रदोष काल में भगबान् सहस्रार्जुन जी ने अग्निदेव का आव्हान किया तथा अग्निबाण का मन्त्र पूर्बक प्रयोग कर धनुष की प्रत्यन्चा पर चढा कर भगबान् सहस्रार्जुन जी ने अग्निदेव से कहा मेरे पूज्य अग्निदेव आप मेरे अग्निर्बाण की नोंक पर बिराजमान हो जाईये! और मारी मद राक्षस की दस योजन अरण्य क्षेत्र की परिधि मे सारे अरण्य को आप भोजन स्बरूप ग्रहण कर अपनी उदर की क्षुधा को शान्त कर मुझे मेरे बचन को पूर्ण स्बयं को संतुष्ट कर ले! अग्निदेव जी ने ऐसा ही किया दस योजन की परिधि मे अग्रि देव ने अग्निमय कर दिया अन्त मे बह अग्निर्मय बाण दैत्यराज मारीमद राक्षस को जा लगा जिसके कारण उसका बथ हो गया! अरण्य से आकाश तक अग्नि की लपटे उठ रही थी मानो कोई स्बर्ण की मुदरी मे कोई सुन्दर माणिक विराजमान हो! घोर दाबानल के कारण मारीमद का बध भगबान् सहस्रार्जुन जी ने कर दिया !!स्बर्ग ने देबताओ ने भगबान् सहस्रार्जुन जी के ऊपर पुष्पो की बर्षा की ! अगले दिबस चैत्र बदी पडबा को मारी राक्षस के बध होने की प्रसन्नता प्रजा ने देखने को मिला! प्रजा ने मारी राक्षस के मरने के कारण रंगोत्सब का पर्ब मनाया! एक दूसरे के ऊपर टेसू का रंग डाला जा रहा था! चहुँ ओर प्रसन्नता का बाताबरण था परन्तु इस अग्नि के कारण आपब ॠषि ( ॠषि वशिष्ठ) की की कुटिया भी जल कर भस्म हो गयी! जब ये बात आपब ॠषि को पता चली तो बे भगबान् सहस्रार्जुन जी के पास पहुंचे. बहाँ पर ही अग्नि देव ने आपव ॠषि से सारी कथा कह सुनाई तब आपव ॠषि का क्रोध शाँन्त हुआ! उन्होने अपने कमण्डल से जल लेकर माता शीतला का आव्हान करते हुए जल से उस क्षेत्र का अभिसिन्चन करते हुए मन्त्र…. ॐ घौः शान्तिरिक्षः पृथ्बी शान्तिः रापः शान्तिरौषयदः शान्तिः वनस्पतयः शान्ति……
ॐ शान्तिः. शान्तिः शान्तिः!!!
पढ कर अग्नि देव की क्षुधा को तथा दस योजन ने फैली बिशाल होलिका को शान्त कर माता शीतला का पूजन कर सभी को बासी भोजन प्रसादी करा कर प्रजा के उदर विकार को भी शान्त कर दिया!
भगबान् सहस्रार्जुन जी ने अग्निदेव से कहा — भगबन् मेरी सेबा मे कोई त्रुटि हो तो बताये?
अग्निदेव बोले — राजन! मै तुम्हारी प्रजा भक्ति और सेबा से बहुत प्रसन्न हू?
चाहो तो बर माँग सकते हो?
भगबान् सहस्रार्जुन जी हाथ जोड कर बोले —
सप्तद्वीपो पर मेरी प्रजा कभी आपसे पीडित ना हो!
आप मेरे राज्य के सदैब ही रक्षक हो!
अग्निदेव… तथास्तु कह कर अपने धाम को चल दिये!
भगबान् सहस्रार्जुन जी ने आपब ॠषि को ससम्मान अपने राजभबन मे ले जाकर षोडशोपचार पूजा की तथा राजभवन ने ही रूकने का निबेदन किया!
आपब /वशिष्ठ ॠषि वोले — हमारा जीबन भोग बिलास से विरत परमेश्वर की साधना . सेबा से ही तृप्त होगा राजन! मै तुम्हारे न्यायपूर्बक व्यवहार. आतित्थ्य, और प्रजासेबा से बहुत प्रसन्न हूँ आपको आशीर्वाद देता हूँ कि आपके राज्य मे कभी उत्पात. रोग. नही होगा! प्रजा सदैब सुखी व शान्ति ने रहेगी ! ऐसा कहकर आपव ॠषि भी वन गमन कर गये !
बासी भोजन प्रसादी के पर्व को कई क्षेत्रों बसौडा, तथा बूडा बासौडा- अथबा बूडे बाबू के नाम से भी ये पर्ब मनाये जाते है जो अपभ्रन्श से पूर्ब सहस्रबाहू का बासौडा के नाम से पर्व मनाया जाता था! बही बासौडा की प्रसादी से महामाया देबी, अन्नपूर्णा. हींगलाज शीतला माता आदि देवियो की पूजा आज भी होती हैं!
मारी के मद तथा मारी का बध करने के कारण भगबान् सहस्रार्जुन जी का नाम मारी मद भञ्जक तथा मारी भञ्जक भी पडा!
इस प्रकार भगबान् सहस्रार्जुन जी अपनी प्रजा की रक्षा करने के लिये मारी का बध करने मे सफल रहे! तबही ही होलिका दहन करने की परम्परा हमारे पौराणिक काल से चली आ रही हैं !

बोलो सहस्रार्जुन भगबान् की जय!
जो वोले सो अभय!
सहस्रार्जुन भगबान् की जय !!!

जिसमे दूसरी कथा भक्त प्रहलाद ब भगबान् नृसिंह जी ब हिरण्यकुश होलिका से भी जुडी हुई है जो हमारे प्रचलन मे है और जो भगबान् सहस्रार्जुन जी से जुडी हुई है बह प्रचलन से बाहर कर दी गयी!
ये कथा यदि आपने पूरी पढी हो तो कमेन्ट करके बताये?
यदि मन प्रसन्नता से हिलोरे ले रहा हो तो…
8445603326 पर फोन करके लेखक को मन की प्रसन्नता के बारे में बताये !
यदि आप भगबान सहस्रार्जुन जी के गौरबशाली अतीत को जन जन तक पहुचाना चाहते हैं तो मेरे द्वारा अन्बेषण किये या लिखे लेखो को शेयर या फार्बर्ड करे!

लेखक ✒/
अन्बेषक 🔍
आचार्य विनोद शास्त्री श्री कार्त्तबीर्य नक्षत्र ज्योतिष संस्थान् हाथरस!
8445603326

शेयर कर्ता कृप्या अपना नाम प्रेषक…..
लिखकर कर सकता है जैसे ः–
प्रेषक ः– अधिबक्ता आशीष हैहयबंशी
(सचिब)
जिला बार ऐसोसियेशन कानपुर!

संपादक Mewara CL Sisodiya

कलाल समाज कोटा के पूर्व अध्यक्ष सत्यनारायण मेवाड़ा (सत्तूजी) के पिताजी श्री रामगोपाल जी मेवाड़ा का स्वर्गवास दिनांक 16.02.2020 को शाम 5.30 बजे हो गया है, जिनकी शवयात्रा 17.02.2020 को सुबह 9.00 बजे स्वनिवास B-43 चित्रगुप्त कॉलोनी से किशोरपुरा मुक्तिधाम जाएगी।

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One thought on “हैहयवंश का होली से है सम्बन्ध!

  1. जय सहस्त्रबाहु अर्जुन
    आपने समाज के कुलदेवता की मैंने यह लेख पहली बार पढ़ा पहली बार सुना हमें तो यह ज्ञात नहीं था हम तो होलिका दहन नर्सिंग वाली कहानी ही सुन रहे थे आपने जो जानकारी दी यह हमारा समाज का गौरव और समाज का मान बढ़ाया अपने आपको बहुत-बहुत धन्यवाद इस तरह की पूरी और भी इतिहास में जो छुपी हुई जानकारी हो उनकी हमें बार-बार जानकारी देते रहें आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर जी

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नमस्ते,
समाजबंधु विवाह मॅट्रिमोनी में आपका स्वागत है।
धन्यवाद।
मनोज कुमार शाह