महाभारत युद्ध को धर्म युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध में केवल दो पक्ष था एक कौरव दूसरा पांडव । भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई श्री बलभद्र एक मात्रा ऐसे नायक थे जो हमेशा युद्ध के खिलाफ रहे। निष्पक्ष रहते हुए बलभद्र जी ने द्युत-सभा के लिए धर्मराज युधिष्ठिर को भी दुर्योधन के बराबर ही जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने चाहा था कि महाभारत युद्ध ना हो। उन्होंने महाभारत के युद्ध में हिस्सा नहीं लिया था।
बलराम ही एकमात्र ऐसे चरित्र हैं जो हमेशा अपना निष्पक्ष रूप दिखाते हैं। दुर्योधन और भीम दोनों ही को गदा की शिक्षा बलराम जी ने दी थी। शिष्य होने के नाते वे दोनों को बराबर और अपना मानते थे, और उनके लिए पांडव और कौरव दोनों ही उनके अपने थे। महाभारत युद्ध निश्चित देख कर वे दुःखी हो कर वहां की भूमि छोड़ कर चले गए थे।
दुर्योधन और भीम में जब गदा युद्ध आरम्भ होता है तब वे लौटते हैं और इस गदा युद्ध के निर्णायक बनते हैं। इस गदा युद्धमें हो रहे अधर्म होते देख बलराम जी नाराज होकर चले जाते हैं। उसी वक्त वे कहते हैं कि भीम जैसे शिष्य के लिए हमेशा शर्मिंदा रहेंगे साथ ही यह भी कहते हैं कि मुझे सारी जिंदगी इस बात पर गर्व रहेगा कि दुर्योधन मेरा शिष्य था…।
श्री बलराम जी महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद किसी भी उत्सव में हिस्सा नहीं लेते हैं। एकमात्र बलराम ही नायकत्व के असल गुणों से भरे चरित्र के रूप में दिखते हैं।