श्री सहस्रबाहु अर्जुन : कलचुरी, कलवार, कलाल, कलार कुलदेवता की महागाथा

(मंगलाचरण)
ॐ सहस्रबाहवे नमः ।
धर्मसंरक्षकाय, प्रजाहितकारिणे, जगदेकवीराय, नमो नमः ॥

अर्थ: सहस्रभुजाओं वाले उस परम वीर को नमन, जो धर्म के रक्षक, प्रजा के हितकारी और जगत के अद्वितीय योद्धा हैं।


1. अवतरण की कथा — सुदर्शन-चक्र से सहस्रबाहु तक

सतयुग में सुदर्शन-चक्र ने भगवान विष्णु से कहा कि उसने अनेक युद्ध किए पर तृप्ति न हुई। तब विष्णु ने चक्र को कहा — मृत्युलोक में जा कर यथेष्ट राज करो, प्रजा की भलाई करो, अधर्मी व दुष्टों का नाश करो। इसी रूप में सुदर्शन-चक्र का अवतरण हुआ और वह अवतार हुए — श्री सहस्रार्जुन (सहस्रबाहु अर्जुन)।

2. जन्म, कुल और उपाधियाँ

जन्मस्थल: महिष्मती (वर्तमान महेश्वर, मध्यप्रदेश, नर्मदा तट)
जन्मतिथि: कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष, सप्तमी — दिन: रविवार
पिता: चक्रवर्ती सम्राट कृतवीर्य (कृतवीर्य के कारण सतयुग को कृतयुग भी कहा गया)
माता: सर्वाधिक मान्य मतानुसार सरमा देवी (पद्मिनी) — सत्यवादी हरिश्चंद्र की पुत्री
मूल नाम: अर्जुन
प्रमुख उपाधियाँ: सहस्रबाहु, राजराजेश्वर, कार्तवीर्य, चक्रदेव, समयदेव, पर्जन्य
पुराणों में उनके 1000 नाम मिलने का उल्लेख है। जैन ग्रंथों में उनका नाम सहस्र-किरण मिलता है।

3. तपस्या और दत्तात्रेय के 10 वरदान (कहानी स्वरूप)

युवा अर्जुन ने मुनि गर्ग की सलाह पर सह्य-पर्वत की गुफा में कठोर तपस्या की। दत्तात्रेय प्रसन्न हुए और उन्हें दस वरदान दिए — जिनमें प्रमुख रूप से ये शामिल थे:

  • युद्ध में सहस्र (1000) भुजाएँ प्राप्त हों, पर वे हल्की रहें।
  • पर्वत-आकाश-जल-पाताल में अबाध गति।
  • प्रजा पालन हेतु अद्वितीय ऐश्वर्य-शक्ति।
  • निरंतर दान के बावजूद धन की अक्षयता।
  • यदि कुमार्ग पर चलूं तो सन्मार्ग दिखाने वाला उपदेशक।
  • श्रेष्ठ पुरुष के हाथों ही समापन (मृत्यु)।
  • मोक्ष का ज्ञान।
  • श्रेष्ठ अतिथि का प्राप्त होना।
  • रण में अजेयता।
  • चक्रवर्ती सम्राट होने का आशीर्वाद।

इन वरदानों ने उन्हें न केवल योद्धा बनाया, बल्कि धर्म, तंत्र और यज्ञों के आचार्य भी बना दिया।

4. शासन-नीति, धर्मप्रियता और प्रकृति-प्रेम

सिंहासन पर बैठते ही अर्जुन ने घोषणा करवाई — “मेरे राज्य में राजा के अतिरिक्त कोई शस्त्र धारण न करेगा; जो हिंसा करेगा वह दण्डित होगा।” इस सिद्धांत से वे सिद्धांतवादी और अहिंसा-प्रेमी बने।
जब सूर्यदेव ने खाण्डव वन दहकाने के लिए कहा, तो सहस्रबाहु ने मना कर दिया — “यह सम्पदा मेरी रक्षा में है।” उन्होंने मांसभक्षण निषेध किया और कृषिकी के लिए नहरें व नदियाँ बनवाईं। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश की सहस्त्रवां / अर्जुनेय (बाहुदा) नदी उनके प्रयासों से जुड़ी रही।

5. पराक्रम-कथाएँ — रावण-विजय और नर्मदा-धारा मोड़ना

एक दिन दिग्विजय पर निकले सहस्रबाहु अर्जुन की दृष्टि उनके राज्य के प्रमुख नगर महिष्मती पर पड़ी, जहाँ रावण अपने दुष्ट कृत्यों से भय फैला रहा था।

उसी समय नगर पर नर्मदा नदी का उग्र बहाव आया, जो प्रजा को डुबा देने लगा। रोते हुए लोग अर्जुन के पास आए। सहस्रबाहु ने अपनी अनगिनत भुजाओं से वृक्ष बांधे, शिलाखंड गिराए और नदी की दिशा बदल दी। इस चमत्कार से नगर और प्रजा सुरक्षित रहे। आज भी नर्मदा तट पर भारी शिलाराशियाँ उसी घटनाक्रम की स्मृति बताती हैं।

वहीं रावण पूजा करने आया था, लेकिन नदी के बहाव के कारण उसकी पूजा बाधित हो गई। क्रोधित रावण ने सहस्रबाहु पर आक्रमण किया। अर्जुन ने अपनी वीरता और रणनीति से रावण को पराजित किया और राजदरबार में बंदी बनाकर लाया।रावण के दस सिरों पर विजय और उत्सव के प्रतीक दस दीपक सजाए गए, जिन्हें ‘आनंददीप’ या ‘नंदादीप’ कहा गया। यह दृश्य देखकर प्रजा और दरबारी आनंदित हो उठे। यही प्रथम दीपावली का प्रेरक प्रसंग माना जाता है।

6. परिवार, वंश और समाज में प्रभाव

पत्नी: महारानी मनोरमा
प्रमुख पुत्र: जयध्वज (सबसे बड़ा)
प्रमुख पौत्र: महाराज तालजंघ — उज्जैन में महाकाल की स्थापना की परंपरा से जुड़ा नाम; उनके वंशजों ने अवंतिका (उज्जैन) नगर बसाई।
कलचुरी वंश से जुड़े अनेक समाज आज भी उन्हें अपना कुलदेव मानते हैं — कलचुरी, ताम्रकार, मारु, बुनकर, सोमवंशी, ब्याहुत इत्यादि।

7. आचार्य, तंत्र और यज्ञ

सहस्रबाहु को यज्ञाचार्य भी कहा गया — पद्मपुराण के अनुसार उन्होंने 10,000 (दस हजार) यज्ञ किए; स्वर्ण स्तंभ व वेदी बनवाईं और वृहद् दान किया।
वे तंत्राचार्य भी थे — अथर्ववेद आधारित तन्त्रशास्त्र के कारण; उनके यंत्र-मंत्र से लोग दैविक/दैहिक/भौतिक बाधाओं का निवारण मानते आए हैं।
वे पर्जन्य भी कहे गए — योगबल से वर्षा-विनियोग नियंत्रित करने की कथा मिलती है।

8. आराध्य स्थान और विश्व-प्रतिध्वनि

प्रमुख मंदिर: राजराजेश्वर मंदिर, महेश्वर (महिष्मती) — यहाँ नंदादीप / आनंददीप सैकड़ों वर्षों से प्रज्ज्वलित हैं; कहा जाता है कि सहस्रबाहु ने शिवलिंग में समाधि ली।
विदेशों में स्मरण: जापान (क्वानोन/करुणा-देवता के रूप में), चीन (ताइपे संग्रहालय में सहस्रभुजा प्रतिमा), नेपाल (अमलेशगंज मार्ग पर प्राचीन मंदिर)। अनुयायी पाकिस्तान, अफगानिस्तान के उत्तरी भाग, जर्मनी, भूटान आदि में भी मिलते हैं।

9. महिष्मती — आज का महेश्वर (यात्री-सूचना)

महिष्मती = महेश्वर (मध्यप्रदेश) — नर्मदा तट पर स्थित प्राचीन नगर।
प्रमुख स्थल: राजराजेश्वर मंदिर, घाट, राजमहल, नंदादीप।
कैसे पहुँचें:

  • निकटतम बड़ा शहर: इंदौर (~90 किलोमीटर)
  • रेलमार्ग: खंडवा स्टेशन (~100–120 किलोमीटर)
  • वायुमार्ग: इंदौर एयरपोर्ट
  • सड़क मार्ग: धामनोद से लगभग 13 किमी; इंदौर-शिर्डी/मुंबई राजमार्ग से कनेक्शन।
    (नोट: यात्रा योजना बनाते समय स्थानीय परिवहन/बस-शेड्यूल/रेल टिकट पहले से देख लें।)

10. दीपावली और लोक-कथाएँ

सहस्रबाहु को दीपावली का प्रथम-प्रवर्तक माना जाता है — रावण पर विजय और दस दीपों का प्रसंग।
विजयोत्सव की एक लोककथा / लोकोक्ति: “दसों शीश दीपक बारी। नृत्य करें रम्भादिक नारी।”

11. समापन — संदेश व समर्पण प्रार्थना (सामूहिक)

संदेश: सहस्रबाहु अर्जुन का जीवन हमें सिखाता है कि शक्ति तभी पुण्य और सार्थक है जब वह धर्म, करुणा और प्रजा-हित के लिए प्रयुक्त हो। वे योगी-सम्राट, यज्ञाचार्य, तंत्राचार्य और प्रकृति-रक्षक — सभी चेहरे लिए हुए व्यक्ति थे। उनकी गाथा कलचुरी समाज का गौरव है।

सामूहिक कलचुरी प्रार्थना (पाठ हेतु):
हे राजराजेश्वर, सहस्रबाहु अर्जुन!
धर्म की स्थापना, प्रजा का कल्याण, संयम और शौर्य — यह गुण हम सबके अंत:करण में स्थिर हों।
हमें सत मार्ग पर चलने की शक्ति दें; समाज की एकता, परम्परा और भक्ति का संरक्षण करें।
जय सहस्रबाहु अर्जुन!


संपादक Manoj Kumar Shah

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