श्री बलभद्र पूजा-विधि (1–10 चरण)
प्रत्येक चरण — श्लोक/मंत्र, संक्षिप्त अर्थ और आवश्यक विधि
1. प्रारम्भ — मंगलाचरण (विघ्न-निवारण एवं गुरु-स्तुति)
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
आरम्भ में गणेश व गुरु-स्तुति से पूजन का शुभारम्भ करें ताकि कार्य निर्विघ्न हो।
- दीप प्रज्वलित करें तथा शंख/घंटी की मधुर ध्वनि करें।
- आचमन (जल-स्पर्श): “ॐ केशवाय स्वाहा…” — 3 बार या सरल जल-छूना।
- मन में संकल्प लें (परिवार, तिथि, व्रत/उद्देश्य) और शांत हो कर आगे बढ़ें।
2. आह्वान (आवाहन) — बलभद्र व माता रेवती का निमंत्रण
ॐ रेवत्यै नमः, आवाहयामि, सन्निधिं कुरु।
फूल-अक्षत हाथ में लेकर विनम्रतापूर्वक प्रभु व माता रेवती को आमंत्रित करें — वे पूजा में पधारें।
- पहले भगवान बलभद्र के समक्ष पुष्प/अक्षत रखें, फिर माता रेवती के समक्ष भी पुष्प अर्पित करें।
- जप: “ॐ बलरामाय संकर्षणाय नमः” — 11 बार। फिर “ॐ रेवत्यै नमः” — 5 या 11 बार।
- आह्वान के बाद थोड़ी देर मौन बैठकर मन-सम्मोहन/ध्यान करें कि देव सन्निधि में हैं।
3. आसन अर्पण
भगवान के लिए स्वच्छ आसन या पीठिका अर्पित करें — यह उनका विश्राम स्थान है।
- वेदिका/पीठ पर साफ कपड़ा या पुष्प बिछाएँ और उसे आसन कहें।
- यदि कलश प्रतिष्ठित है तो कलश के पास छोटा आसन रखें।
- मन से कहें: “इह तिष्ठतु, सुखं चिरं वर्धतु।”
4. अर्घ्य (जल-स्वागत)
देव का स्वागत पवित्र जल से करें — अतिथि सत्कार की यह विधि है।
- पात्र में शुद्ध जल लें, उसमें अक्षत (चावल), पुष्प और एक चुटकी तिल/कुश डालें।
- दोनों हाथ जोड़कर मंत्र पढ़ते हुए चरणों में या पुजा पात्र में जल अर्पित करें।
- उपयोगित जल बाद में तुलसी-पौधे/गमले में डाल दें या नदी में प्रवाहित करें।
5. स्नान (अभिषेक)
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥
सभी पवित्र नदियों का आवाहन कर जल/पंचामृत से मूर्ति/कलश का अभिषेक करें।
- मूर्ति हो तो पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) या शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
- चित्र/कलश पर केवल जल-छिड़काव करें और साफ कपड़े से सुखाएँ।
- अभिषेक के बाद हल्का तिलक लगा कर ‘शुद्धि’ का भाव रखें।
6. वस्त्र एवं आभूषण (शृंगार)
ॐ बलभद्राय नमः । आभरणानि समर्पयामि ॥
शुद्ध वस्त्र, माला और सरल आभूषण चढ़ाकर प्रभु का श्रृंगार करें।
- सफेद/नीलवर्ण का कपड़ा मूर्ति/चित्र पर रखें या मूर्ति को पहनाएँ।
- फूलों की माला और चंदन तिलक अर्पित करें; हल-मुसल का प्रतीक साथ रखें।
- मन में प्रार्थना: “हे प्रभु, यह वस्त्र और आभूषण आपकी सेवा हेतु स्वीकार करें। ”
7. गंध (चन्दन), अक्षत और पुष्प अर्पण
चंदन की सुगंध, अक्षत (चावल) तथा ताजे पुष्प अर्पित कर श्रद्धा व्यक्त करें।
- प्रथम चंदन/गंध से तिलक या चंदन अर्पित करें।
- कम से कम 11 अक्षत दाने चरणों में छिडकें।
- फिर पुष्प-हार/पुष्पांजलि अर्पित कर एक क्षण ध्यान रखें।
8. धूप–दीप (सुगंध व ज्योति)
धूप से वातावरण को पवित्र और दीप से प्रभु को प्रकाश अर्पित करें।
- धूप/अगरबत्ती जलाकर भगवान के चारों ओर घुमाएं ताकि सुगंध फैले।
- घी/तेल का दीपक लेकर आरती की मुद्रा में 1–3 बार घुमाएं।
- आरती के दौरान आरती-श्लोक या भजन गाएँ; भक्तों से शंख/घंटी की ध्वनि कराएँ।
9. नैवेद्य (भोग/प्रसाद)
श्रद्धा से अर्पित अन्न—भोग भगवान का भोग बनकर प्रसाद के रूप में लौटता है।
- सात्त्विक भोग रखें: दूध/दही, खीर/लड्डू, फल व मक्खन व आवश्यक वस्तुएँ।
- भोग अर्पित कर कुछ समय शांति से ध्यान रखें फिर आचमन जल अर्पित करें।
- प्रसाद वितरण करते समय भक्तों को प्रसाद दें और आशीर्वाद लें।
10. आरती, पुष्पांजलि, क्षमायाचना और विसर्जन
आरती:
(दीप/कपूर से परम्परानुसार आरती घुमाएँ; भक्तों से सामूहिक प्रणाम कराएँ।)
पुष्पांजलि विधि:
पुष्प हाथ में लेकर निम्न मंत्र उच्चारित करें और धीरे-धीरे पुष्प अर्पित करें:
मंत्र:
“ॐ नमो बलभद्राय, सर्वकार्यसिद्धये, पुष्पांजलिं समर्पयामि”
भक्त मिलकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्प अर्पित करें।
यह सामूहिक रूप से भक्तों की भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।
क्षमायाचना:
(भूल-चूक के लिए परमेश्वर से क्षमा प्रार्थना करें।)
समापन:
यदि कलश-स्थापना की गई थी तो कलश जल/पौधे में विसर्जित करें।
अंत में तीन बार ‘ॐ शान्ति:’ कहकर शांति-पाठ करें।
पूजा समापन आरती से करें; पुष्पांजलि एवं क्षमा-प्रार्थना अर्पित करें; अंत में प्रसाद वितरित करें और विसर्जन करें।
नोट: उपर्युक्त विधि साधारण पूजन हेतु उपयुक्त है। यदि आप विशेष रीतियाँ (हवन, सहस्त्राहुतियाँ आदि) करना चाहें तो पुराण/आचार्य की परामर्शानुसार करें। पूजा में सदैव मन की शुद्धता और श्रद्धा प्रमुख है। जय श्री बलभद्र!