“प्रथम अध्याय: मंगलाचरण एवं स्तुति”
भक्तजनो! आइए, आज हम श्री बलभद्र भगवान की पावन कथा का श्रवण करें। यह कथा न केवल उनके पराक्रम और बाल लीलाओं की झलक देती है, बल्कि हमें भक्ति, सेवा और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देती है। श्रद्धा से सुनें और पुण्य लाभ प्राप्त करें।
जय बलभद्र भगवान की!
ध्यान मंत्र: (पूजा के आरंभ में भगवान का ध्यान करते हुए)
“श्वेतवर्णं महावीरं हलमुसलधारिणम्।
रौद्रं क्षेमं च सौम्यं च बलरामं नमाम्यहम्॥”
भावार्थ: मैं श्वेतवर्ण वाले, महावीर, हल और मुसल धारण करने वाले, रौद्र रूप में संकट हरण करने वाले, सौम्य रूप में कृपा करने वाले भगवान बलराम को नमस्कार करता हूँ।
आवाहन मंत्र (भगवान को आमंत्रित करने हेतु):
“ॐ बलरामाय नमः।
आवाहयामि भगवंतं बलरामं।
मम गृहे पधार्य शुभं कुरु।”
भावार्थ:
हे बलराम जी! मैं आपको सादर आमंत्रित करता हूँ। कृपया मेरे घर में पधारिए और अपने भक्तों को शुभता प्रदान कीजिए।
श्री बलराम जी का अवतरण — शेषनाग से बलभद्र बनने की कथा
जब भगवान विष्णु ने राम रूप में अवतार लिया, तब शेषनाग ने लक्ष्मण बनकर सेवा की — वनवास में, युद्ध में, हर संकट में। लेकिन जब विष्णु जी ने कृष्ण रूप में पुनः अवतार लेने का संकल्प किया, तब शेषनाग ने प्रार्थना की—”प्रभु! इस बार मुझे आपका बड़ा भाई बना दीजिए, ताकि मैं आपकी रक्षा और मार्गदर्शन कर सकूं।” भगवान मुस्कराए—”तथास्तु! तुम इस बार ‘बलराम’ के रूप में मेरे अग्रज बनोगे, श्वेत वर्ण के होगे, हल और मुसल धारण करोगे, और धरती पर बल, धर्म और कृषि के प्रतीक माने जाओगे।”
कंस द्वारा देवकी के छह पुत्र मारे गए। सातवें गर्भ में शेषनाग ने प्रवेश किया। भगवान की प्रेरणा से वह गर्भ संकर्षण होकर—अर्थात खींचकर—देवकी से रोहिणी माता के गर्भ में चला गया। इसलिए बलराम जी का एक नाम ‘संकर्षण’ पड़ा।
आठवें गर्भ से श्रीकृष्ण जन्मे। वासुदेव जी उन्हें रात में गोकुल ले गए और यशोदा मैया की गोद में सुला दिया। बलराम और कृष्ण साथ खेले, गाय चराई, माखन चुराया, और राक्षसों का वध किया।
बलराम जी ने बचपन में ही धेनुकासुर वध, प्रलंबासुर वध और यमुना को हल से खींचकर सीधा करने जैसे चमत्कार किए। वे शेषनाग के ही अवतार हैं और उनके साथ श्रीकृष्ण की हर लीला धर्म की स्थापना का भाग रही।
इनकी कथा सुनना और सुनाना पुण्यकारी है।
श्री बलभद्र जी की बाललीला गोकुल में
भक्तों! आइए, अब हम श्री बलराम जी की बाल लीलाओं को सुनते हैं।
श्री बलराम जी का बचपन गोकुल में बीता। वे अपने छोटे भाई श्रीकृष्ण के साथ खेलते, गाय चराते और मिट्टी के हल से धरती जोतते। तभी से उन्हें हलधर कहा जाने लगा। माता रोहिणी और यशोदा दोनों उन्हें प्रेम से पालती थीं। बलराम जी का शरीर उज्ज्वल, मन शांत और व्यवहार गंभीर था। वे सदैव अपने भाई कृष्ण की रक्षा करते थे और गाँव में सबके प्रिय थे।
बाल्यकाल से ही वे अपने छोटे भाई श्रीकृष्ण की रक्षा करते रहे। कभी श्रीकृष्ण को चिढ़ाने वालों को समझाते, कभी असुरों की चाल को पहले ही भाँप लेते। जब श्रीकृष्ण त्रिणावर्त, शकटासुर और पूतना से जूझे — तब श्री बलराम जी ने मौन भाव से उनकी रक्षा की। इस तरह उनका बचपन गोकुल में बीता । गोकुलवासी उन्हें शेषनाग का अवतार मानते थे — वे शक्ति के देव हैं, धर्म के रक्षक हैं। अब हम भगवान का स्मरण करें — 🔸 बलरामाय नमः 🔸 हलधराय नमः 🔸 संकर्षणाय नमः
कृपा कर आँखें मूंदें और प्रभु की छवि का ध्यान करें।
भक्तों! आइए अब श्री बलराम जी की दिव्य लीलाओं को और सुनते हैं।
जब-जब पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ा, श्री बलराम जी ने राक्षसों का वध कर धर्म की रक्षा की। उन्होंने द्वैतवक्र, बालवाल, और दन्तवक्त्र जैसे कई असुरों का संहार किया। एक बार, उन्होंने यमुनाजी को अपनी हल की नोंक से खींच लिया, जब वह नहीं आईं। इससे सबको समझ आया कि वे केवल बल के नहीं, भावना के भी देव हैं।
द्वारका नगरी बसाने में श्री बलराम जी ने श्रीकृष्ण का साथ दिया। समुद्र किनारे एक सुंदर नगरी खड़ी की गई, जहाँ धर्म, कृषि और सादगी का वास था। श्री बलराम जी ने वहाँ भी हलधारी रूप में लोगों को श्रम का आदर्श दिया। द्वारका में रहते हुए वे सभी यदुवंशी राजाओं में सबसे सम्मानित और वयोवृद्ध थे।
एक दिन, उनके विवाह के लिए महाराज कुकुधमी अपनी दिव्य कन्या रेवती को लेकर आए। रेवती जी, राजा रैवत (कुकुध्मी) की दिव्य कन्या थीं। रेवती बहुत ऊँचे कुल की और दीर्घायु थी। श्री बलराम जी ने प्रेमपूर्वक विवाह किया और अपने हल से पृथ्वी को दबाकर रेवती का कद सामान्य किया। यह विवाह बल और विनम्रता के मिलन का प्रतीक था।
श्री बलभद्र जी का स्वरूप, पूजा विधि और मंत्र”
भक्तों!
अब सुनिए भगवान बलभद्र जी का दिव्य स्वरूप। उनका वर्ण श्वेत है, वस्त्र नीलवर्ण का है, सिर पर केसरिया साफा सुशोभित है। मुखमंडल शांत, तेजस्वी और सौम्य है। उनके दाएँ हाथ में मुसल है — जो ओखल में धान कूटने वाला पारंपरिक लकड़ी है। यह परिश्रम, रक्षण और शक्ति का प्रतीक है। बाँये कंधे पर हल है — जो कृषि, धर्म और जीवन-निर्भरता का प्रतीक है। वे अपने एक हाथ से भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।
जब बलराम जी की पूजा करें तो स्थान को शुद्ध करें, स्वच्छ पीला या सफेद कपड़ा बिछाएँ और भगवान की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, चंदन, फल, और पंचामृत अर्पित करें। पहले गणेश पूजन करें, फिर ‘‘ॐ बलरामाय नमः’’ से भगवान का आवाहन करें। पूजा में हल और मुसल के प्रतीक (लकड़ी या चाँदी के) भी रखें।
अब ध्यानपूर्वक मंत्र जप करें। ध्यान मंत्र —
“श्वेतवर्णं महावीरं हलमुसलधारिणम्।
रौद्रं क्षेमं च सौम्यं च बलरामं नमाम्यहम्॥”
इसके बाद ‘ॐ बलरामाय नमः’ मंत्र का 21 या 108 जप करें। फिर आरती करें और भगवान से बल, धर्म, और रक्षा की शक्ति की याचना करें।
पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान मंत्र (पूजन क्रम अनुसार):
पाद्य: “ॐ बलभद्राय नमः पाद्यं समर्पयामि।” (भगवान के चरण धोने के लिए जल अर्पित करें।)
अर्घ्य: “ॐ हलायुधाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि।” (भगवान को हाथ धोने के लिए जल, अक्षत, पुष्प अर्पित करें।)
आचमन: “ॐ रोहिणीसुताय नमः आचमनीयं समर्पयामि।” (भगवान को शुद्ध जल से आचमन कराएं।)
स्नान: “ॐ दाऊदेवाय नमः स्नानार्थं जलं समर्पयामि।” (जल, पंचामृत या गंगाजल से भगवान को स्नान कराएं।)
🍯 गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और आरती मंत्र संक्षेप में:
गंध: “ॐ बलरामाय नमः गंधं समर्पयामि।” पुष्प: “ॐ बलभद्राय नमः पुष्पाणि समर्पयामि।” धूप: “ॐ बलरामाय नमः धूपं समर्पयामि।” दीप: “ॐ हलायुधाय नमः दीपं समर्पयामि।”
नैवेद्य: “ॐ रोहिणीसुताय नमः नैवेद्यं निवेदयामि।”
श्री बलभद्र व्रत-कथा — भाग १: एक वृद्धा की श्रद्धा और भगवान की कृपा
भाइयों और बहनों,
पुराने समय की बात है। एक छोटे से गाँव में एक वृद्धा रहती थी। उसका जीवन कठिनाइयों से भरा था, फिर भी वह भगवान में विश्वास रखती थी। उसके पास न धन था, न सहारा — केवल एक पुत्र था जो लंबे समय से अस्वस्थ चल रहा था। माँ की आँखें हर रात आँसुओं से भीग जाती थीं, लेकिन उसके मन में आस्था की ज्योति बुझी नहीं थी।
एक दिन गाँव में एक साध्वी आईं। वृद्धा ने उनसे अपना दुःख सुनाया। साध्वी ने करुणा से कहा —
“माँ, तू बलभद्र जी का व्रत कर। वे सच्चे आश्रयदाता हैं, शेषनाग के अवतार हैं, और किसान, गृहस्थ, सबकी रक्षा करने वाले हैं। उन्हें हल और मुसल प्रिय हैं। वे व्रत और भक्ति से शीघ्र प्रसन्न होते हैं।”
वृद्धा ने उसी क्षण से व्रत करना प्रारंभ कर दिया। प्रत्येक बुधवार उपवास रखती, भगवान को दही-चावल, दूध, गुड़ व चना अर्पित करती, और संध्या को दीप प्रज्वलित कर आरती करती। उसने मिट्टी का हल और लकड़ी का मुसल भी पूजन में रखा।
कुछ ही सप्ताहों में उसका पुत्र धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा। उसके मुख पर फिर हँसी लौट आई। गाँव के लोग चकित रह गए — यह बलराम जी की कृपा थी।
श्री बलभद्र व्रत-कथा — भाग २: एक व्यापारी की मनोकामना पूर्ण हुई
एक नगर में एक व्यापारी रहता था। पहले वह अत्यंत सम्पन्न था, पर व्यापार में धीरे-धीरे भारी हानि हुई। न ग्राहक आते, न माल बिकता — कर्ज़ बढ़ता गया। घर में कलह और चिंता का वातावरण था।
एक दिन वह नगर के बाहर एक प्राचीन बलभद्र मंदिर गया। वहाँ की शांति में बैठ वह फूट-फूटकर रो पड़ा। तभी वहाँ के वृद्ध पुजारी ने उसे देखा और बोले —
“बेटा, यदि तू श्रद्धा से बलराम जी का व्रत करेगा, तो वे तेरे संकट हर लेंगे। उनका व्रत हर बुधवार को किया जाता है — शुद्ध मन, सादा भोजन, और भक्ति-भाव से पूजन।”
उसने उसी दिन से व्रत आरंभ किया। सफेद वस्त्र पहना, हल और मुसल की प्रतीक स्थापना की, दही-चावल, गुड़ और चना से पूजा की। बलराम जी की कथा सुनकर आरती की और प्रभु से केवल एक ही वर माँगा — “हे प्रभु, जीवन में फिर से ईमानदारी और सुख का प्रकाश लौटे।”
कुछ ही सप्ताह में व्यापार सुधरने लगा। पुराने ग्राहक लौटे, नया व्यापार मिला और घर में फिर से रौनक आ गई। वह जान गया — “यह केवल श्री बलभद्र की कृपा है।”
श्री बलभद्र व्रत-कथा — भाग ३: व्रत का प्रभाव और जनमानस में विश्वास
इस प्रकार, समय बीतता गया और गाँव-नगरों में बलराम जी के व्रत का प्रचार होने लगा।
जिसने भी श्रद्धा से व्रत किया — उसकी मनोकामना पूर्ण हुई। संतानहीन को संतान मिली, रोगी को स्वास्थ्य मिला, दुखी को सुख मिला।
बलभद्र जी का व्रत विशेष रूप से बुधवार को किया जाता है।
❖ प्रातः स्नान करके श्वेत वस्त्र धारण करें।
❖ मिट्टी या धातु का हल एवं लकड़ी का मुसल पूजा में रखें।
❖ चावल, दही, मिश्री, गुड़, सफेद पुष्प व चना अर्पण करें।
❖ सायं समय कथा, दीप प्रज्वलन व आरती करें।
❖ श्रद्धा से व्रत करने पर प्रभु अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
आज भी असंख्य भक्त बुधवार को “बलराम बाबा का व्रत” रखते हैं। यह व्रत केवल फलदायी ही नहीं, शुद्ध और सरल भी है — यह आस्था और कृपा का बंधन है।
श्री बलभद्र व्रत-नियम (बुधवार व्रत हेतु)
🔹 व्रत का उद्देश्य: श्री बलराम जी की कृपा प्राप्ति, पारिवारिक सुख, संतान की रक्षा, स्वास्थ्य, कृषि-समृद्धि एवं शांति हेतु यह व्रत किया जाता है।
🕉️ व्रत का दिन: ❖ प्रत्येक बुधवार को करें।
❖ विशेष रूप से श्रावण मास, भाद्रपद, गुरुपूर्णिमा, रक्षाबंधन, और बलराम जन्मोत्सव के अवसर पर करें।
🧘♀️ व्रत की तैयारी: प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र (विशेषतः सफेद या हल्के पीले रंग के) पहनें। घर या पूजन स्थान को स्वच्छ कर लें। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजन करें।
🪔 पूजन विधि: लकड़ी या मिट्टी से बना हुआ हल और मुसल स्थापित करें।
- श्री बलराम जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें (यदि न हो तो हल और मुसल ही प्रतीक माने जाएँ)।
- दही, चावल, चना, गुड़, मिश्री, सफ़ेद पुष्प, तुलसी, जल और धूप-दीप से पूजन करें।
- निम्न मंत्रों का जाप करें:
- “ॐ बलभद्राय नमः” (108 बार)
- “जय बलदेव, जय हलधर”
- व्रत-कथा पढ़ें या सुनें।
- आरती करें (श्री बलभद्र जी की आरती नीचे अध्याय में दी जाएगी)।
- अंत में सभी को प्रसाद दें।
व्रत-भोजन:
❖ दिनभर फलाहार करें (फल, दूध, चना, मूंगफली, साबूदाना)।
❖ संध्या को पूजन के बाद एक बार सात्विक भोजन करें (बिना लहसुन-प्याज़)।
श्री बलभद्र पूजन की 5 प्रमुख मान्यताएँ
- संतान-सुरक्षा और बल का वरदान:
जो स्त्रियाँ संतान सुख और संतान की रक्षा हेतु श्रद्धा से बलभद्र जी का व्रत करती हैं, उन्हें स्वस्थ, दीर्घायु एवं बुद्धिमान संतान की प्राप्ति होती है। - कृषि और अन्नवृद्धि:
हलधर स्वरूप होने के कारण, किसान समुदाय विशेष श्रद्धा से बलराम जी की पूजा करते हैं। इससे खेत-खलिहान में समृद्धि आती है और अनाज की कमी नहीं होती। - गृह कल्याण और पारिवारिक शांति:
जिनके परिवार में कलह, रोग या आर्थिक संकट रहता है, वे बलभद्र पूजन से सुख-शांति एवं संतुलन पाते हैं। - बल और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक:
श्री बलभद्र जी का पूजन करने से शारीरिक बल, मनोबल और धैर्य की प्राप्ति होती है। युवा वर्ग को संयम और सही मार्ग मिलता है। - गुरु स्वरूप व्रत की सिद्धि:
बलराम जी को ‘आदिगुरु’ भी कहा गया है। अतः जो विद्यार्थी, साधक या ज्ञान-पिपासु जन पूजन करते हैं, उन्हें गुरु-कृपा और आत्मबोध प्राप्त होता है।
श्री बलभद्र आरती
ॐ जय बलभद्र हरे
प्रभु जय बलभद्र हरे
अपने कुल की रक्षा/२
तू प्रभु नित्य करे… ॐ जय बलभद्र हरे ।।
जो सेवे सुख पावे
प्रति पल गुण गावे
हो स्वामी प्रति पल गुण गावे
सुख-सम्पत्ति घर आवे/२
निर्मल तन पावे… ॐ जय बलभद्र हरे ॥१॥
तुम हलधर हो स्वामी
सब सुख के दाता
हो स्वामी सब सुख के दाता
अन्न तुम्हारे हल से/२
हर प्राणी पाता… ॐ जय बलभद्र हरे ॥२॥
गंगाजल सा पावन
है तेरी काया
हो स्वामी है तेरी काया
जगत् नाथ हो देवा/२
जग तेरी माया… ॐ जय बलभद्र हरे ॥३॥
जल थल के कण-कण में
तुम्हें पाऊँ देवा
हो स्वामी तुम्हें पाऊँ देवा
ऐसा वर दो स्वामी/२
नित्य करूँ सेवा… ॐ जय बलभद्र हरे ॥४॥
भक्त जनों के रक्षक
दिव्य स्वरूप धरे
हो स्वामी दिव्य स्वरूप धरे
गौरवर्ण नीलाम्बर/२
सबके मन मोहे… ॐ जय बलभद्र हरे ॥५॥
विषय विकार मिटाओ
पाप हरो देवा
हो स्वामी पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ/२
करूँ मन से सेवा… ॐ जय बलभद्र हरे ॥६॥
वन्दन हे बलदेवा
जग के सुखदाता
हो स्वामी जग के सुखदाता
चरणों में अर्पित पुष्प को
स्वीकारो दाता… ॐ जय बलभद्र हरे ॥७॥
सभी भक्त मिल करें स्तुति
जगदाता मेरे
हो स्वामी जगदाता मेरे
मुरलीधर के भईया/२
सबके मन मोहे… ॐ जय बलभद्र हरे ॥८॥
जो बलभद्र जी की आरती
जो कोई जन गावे
हो स्वामी प्रेम सहित गावे तन मन सुख सम्पत्ति
मनवांछित फल पावे…
ॐ जय बलभद्र हरे ॥९॥ ॐ जय बलभद्र हरे,
प्रभु जय बलभद्र हरे
अपने कुल की रक्षा/२
तू प्रभु नित्य करे… ॐ जय बलभद्र हरे ।।