जब भगवान बलभद्र अपने छोटे भाई भगवान श्रीकृष्ण और बहन देवी सुभद्रा के साथ बीमार हो जाते हैं और सभी को विश्राम करना पड़ता है तथा उन्हें भी काढ़ा का भोग लगाया जाता है । जाने रथ यात्रा के बारे में ।

(वर्ष-2025)

हर साल ओडिशा के पुरी स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर में एक अनूठी और भावनात्मक परंपरा निभाई जाती है, जो दर्शाती है कि भगवान भी भक्तों के भावों से बंधे होते हैं। इस परंपरा के केंद्र में हैं भगवान बलभद्र, श्रीकृष्ण और बहन सुभद्रा ।

🛕 जब ईश्वर भी बीमार पड़ते हैं

11 जून 2025 को स्नान पूर्णिमा के दिन भगवान बलभद्र, श्रीकृष्ण (जगन्नाथ रूप में) और देवी सुभद्रा का विशेष स्नान अनुष्ठान होगा । 108 पवित्र कलशों से यह स्नान, शुद्धि और ऊर्जा का प्रतीक होता है। लेकिन इस स्नान के बाद एक ऐसी लीला होती है जो हर भक्त को चौंकाती भी है और भावविभोर भी कर देती है — भगवान अस्वस्थ हो जाते हैं

यह मान्यता है कि ठंडे जल से स्नान करने के कारण तीनों विग्रहों को “ज्वर” हो जाता है, और वे लगभग 15 दिनों के लिए विश्राम में चले जाते हैं। इस समय उन्हे मंदिर से स्थानांतरित कर सयन स्थान पर अलग जगह ले जाया जाता है और कहीं कहीं मंदिर में उनके दर्शन से वंचित किया जाता है ।  वे तीनों विश्राम करते हैं । इस अवधि को  अनसर काल”  या  अनवसर”  कहा जाता है।

 विशेष भूमिका

बलभद्र जी इस परंपरा में केवल एक प्रतिभागी नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक के रूप में देखे जाते हैं। जहां श्रीकृष्ण करुणा और लीलाओं के प्रतीक हैं, वहीं बलभद्र जी ठहराव, विवेक और मानसिक संतुलन के देवता माने जाते हैं। जब वे भी अपने पूरे परिवार के साथ बीमार पड़ते हैं, तो यह भक्तों को यह समझाने के लिए काफी है कि ईश्वर भी हमारे भावों को समझते हैं और उन्हें जीते हैं।

🍵 जब भगवान को भी काढ़ा दिया जाता है

अनसर काल के दौरान भगवानों को दर्शन से वंचित रखा जाता है। लेकिन मंदिर में सेवकगण उनकी सेवा में संलग्न रहते हैं। उन्हें विशेष औषधीय काढ़ा अर्पित किया जाता है, जिसे मंदिर के “दयिता सेवक” तैयार करते हैं। इस काढ़े में तुलसी, अदरक, काली मिर्च, दालचीनी और अन्य जड़ी-बूटियाँ होती हैं।

बलभद्र जी को भी यह काढ़ा भोग लगाया जाता है। यह न केवल उनकी सेवा का एक भाव है, बल्कि उस श्रद्धा का प्रतीक है जो भक्त अपने आराध्य के प्रति रखते हैं — जैसे हम अपने घर के किसी बुजुर्ग या प्रियजन को ठीक करने की कोशिश करते हैं।

🌼 नवयौवन दर्शन और शक्ति का पुनरागमन वर्ष 2025

लगभग 15 दिनों के विश्राम के बाद भगवान बलभद्र, श्रीकृष्ण और सुभद्रा नवयौवन रूप” में प्रकट होते हैं। यह दिन नवयौवन दर्शन कहलाता है, जो इस वर्ष 26 जून 2025 को मनाया जाएगा। भक्त इस दिन को अत्यंत शुभ मानते हैं — क्योंकि उनके आराध्य फिर से स्वस्थ होकर दर्शन देते हैं।

🚩 रथ यात्रा की शुरुआत2025

इसके ठीक अगले दिन, 27 जून 2025 को, विश्वप्रसिद्ध रथ यात्रा निकाली जाएगी। भगवान बलभद्र जी “तालध्वज” नामक विशाल रथ पर विराजमान होकर मार्गदर्शन करते हैं। उनके साथ सुभद्रा जी और श्रीकृष्ण क्रमशः “दर्पदलन” और “नंदीघोष” नामक रथों में सवार होते हैं।

पुरी से श्रीगुंडिचा मंदिर तक की यह यात्रा केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता और भक्ति की चरम अभिव्यक्ति है।

🙏 भक्तों के लिए प्रेरणा

बलभद्र जी के परिवार की यह लीला हमें यह सिखाती है कि चाहे आप कितने भी बलवान या बुद्धिमान हों, जीवन में विश्राम, सेवा और सामंजस्य की आवश्यकता होती है। अनसर काल सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मचिंतन, संयम और ईश्वर के प्रति सेवा-भाव की अवधि है।

इस बार जब आप रथ यात्रा देखें या सुने, तो याद रखें — सबसे पहले रथ पर निकलते हैं भगवान बलभद्र, जो शक्ति और संतुलन के प्रतीक हैं। उनका मार्गदर्शन ही प्रभु की यात्रा को पूर्णता देता है।


जय बलभद्र जी की ! जय श्रीजगन्नाथ !

संपादक Manoj Kumar Shah

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