“हलधर प्रभु की महाशक्ति: यमुना को खींचने की अद्भुत लीला”

🔱 बलभद्र जी: यमुना लीला

🔱 बलभद्र जी: शक्ति, शील और संप्रभुता के मूर्तिमान स्वरूप

— श्रीमद्भागवत के दिव्य प्रसंग पर आधारित भक्ति लेख

जय श्री बलराम!
प्राचीन भारत की पुण्य गाथाओं में जब हम श्रीबलराम जी के जीवन के उन स्वर्णिम पलों की चर्चा करते हैं, जहाँ उनका व्यक्तित्व गंभीर हिमालय के समान अचल, यमुना की धारा के समान प्रवाहशील, और धर्म के सच्चे रक्षक के रूप में प्रकट होता है, तब हमारी आत्मा पुलकित हो उठती है।

🌊 यमुना की अवज्ञा और हलधर का न्याय

श्रीमद्भागवत महापुराण, स्कंध 10 के अध्याय 65 में एक ऐसा ही अलौकिक प्रसंग वर्णित है – जब श्रीबलराम जी ने यमुना नदी को अपनी हलधार शक्ति से सीधा कर दिया।

एक बार बलराम जी वसंत ऋतु में द्वारका से बाहर, यमुना तट पर अपनी पत्नियों, सखाओं और भक्तों के साथ आनंद विहार के लिए गए। वहाँ का वातावरण सुगंधित पुष्पों, कोकिल-स्वर, और मृदु समीर से पूरित था। उन्होंने यमुना से कहा:

“हे पुण्यवती यमुना! तू मेरी ओर प्रवाहित हो, जिससे मैं और मेरी प्रियाएँ जलविहार कर सकें।”

परंतु यमुना देवी ने उस हलधर भगवान की आज्ञा को उपेक्षित किया। बलराम जी ने क्रोध से अपनी हलधार (हल) उठाई और कहा —

“हे सरिते! जब तू मेरी बात नहीं मानती, तब मैं तुझे बलपूर्वक अपनी ओर खींच लूंगा!”

उन्होंने पृथ्वी को हल से चीरते हुए यमुना की धारा को मोड़ दिया। भयभीत यमुना देवी ने प्रार्थना की और श्रीबलराम जी की चरणों में नतमस्तक हुईं।

🌟 बलराम — करुणा और नियंत्रण के साक्षात स्वरूप

यह प्रसंग हमें केवल एक वीरता की कथा नहीं देता, यह बताता है कि जब ब्रह्मांड अपने संतुलन से डगमगाता है, तब बलराम जी उसे सीधा करते हैं — प्रेम से नहीं तो हल से। वे न्याय के रक्षक, मर्यादा के संरक्षक और भक्तों के परम हितैषी हैं।

🕉️ संस्कृत श्लोक (24–33)

तत्रास्य स्त्री‑गणैः सह रमन्ते हलेरुगः ।
ततो जघन्यः स पुत्रं हलकर्षणे प्रवर्तत ।
बलोद्भ्रंशेन शिलायां यमुना प्रवर्तते हरेः।।

उच्यते च ते जलप्रवाहं शतशः वहन्ति तव हले ।
ततः श्रीबलराम ततो निर्मग्ना स्वयम् यमुना घोषिणी ।

राम राम महाबाहो त्वं जानासि न मघवम् ।
रिहामि त्वां जगतः यति मे नहं तव नाथः ॥

ततः श्रीबलरामो वहती प्रसरतः स्वयम् ।
अधरं गन्धानुरेचे सुवर्णमणिमालाम् ।
अद्यापि पुनरपि यमुना बहती बहुविधा धारैः।।

🗣️ हिंदी अनुवाद – श्लोक 24–33

श्लोक 24–25: श्रीबलराम गोपियों संग रमण कर रहे थे। वे चाहते थे कि यमुना नदी उनका रास विहार का हिस्सा बने।

श्लोक 26: नदी ने उनकी आज्ञा नहीं मानी, बलराम जी क्रोधित हुए। उन्होंने हल के नुकीले सिरे से नदी की धारा खींचना शुरू किया।

श्लोक 27: उन्होंने कहा — “हे नदी! तुम मेरी अवज्ञा करती हो, लेकिन मैं तुम्हें अनेक धाराओं में खींच लाऊंगा।”

श्लोक 28–29: यमुना देवी प्रकट हुईं, भयभीत होकर कहा — “हे राम! मैंने आपकी शक्ति को नहीं पहचाना।”

श्लोक 30–31: उन्होंने क्षमा मांगी और श्रीबलराम जी ने उन्हें क्षमा कर कृपा पूर्वक उनके जल में प्रवेश किया।

श्लोक 32–33: यमुना ने उन्हें दिव्य आभूषणों और वस्त्रों से सुशोभित किया। आज भी यमुना वही मार्ग बहती है।

सूचना विवरण
स्थान वृन्दावन (रामघाट / बलभद्र घाट)
राज्य उत्तर प्रदेश
नज़दीकी प्रमुख मंदिर बलराम जी को समर्पित स्थानीय मंदिर एवं घाट स्थल
कैसे पहुँचे दिल्ली से सड़क मार्ग, मथुरा से रेल मार्ग, वृन्दावन में ई‑रिक्शा/ऑटो उपलब्ध

संपादक Manoj Kumar Shah

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