आजकल लगभग हर सामाजिक आयोजन के बाद मनमुटाव और शिकायतें सुनाई देने लगती हैं। छोटी-सी कमी भी तुरंत आलोचना का रूप ले लेती है। जिस कार्यक्रम का उद्देश्य समाज को जोड़ना और उत्सव का माहौल बनाना होता है, वही कई बार तनाव और मतभेद की वजह बन जाता है। आयोजन के पीछे समिति और स्वयंसेवकों की लंबी तैयारी, समय और ऊर्जा की बड़ी भूमिका रहती है। कई बार आर्थिक मजबूरियाँ भी सामने आती हैं, फिर भी नीयत समाज-सेवा और एकता की ही होती है।
समस्या तब पैदा होती है जब हम सकारात्मक पक्ष से अधिक कमियों पर ध्यान देते हैं। कुछ लोग केवल दोष गिनाते हैं, पर रचनात्मक सुझाव बहुत कम देते हैं। दूसरी ओर आयोजक आलोचना को व्यक्तिगत मानकर आहत हो जाते हैं। यह स्थिति तनाव को जन्म देती है और रिश्तों में दूरी लाती है। धीरे-धीरे यह संगठन की एकता को भी कमजोर कर देती है।
मतभेद के सामान्य कारणों में जिम्मेदारियों का असमान बंटवारा, पारदर्शिता की कमी, आर्थिक लेन-देन पर शंका, पक्षपात की धारणा, अपेक्षाओं का पूरा न होना और संवाद के अभाव शामिल हैं। छोटी-छोटी गलतफहमियाँ जो समय पर साफ न की जाएँ, वे बड़े विवाद का रूप ले लेती हैं और संबंधों में खटास ला देती हैं।
समाधान स्पष्ट और व्यावहारिक हैं। आयोजन से पहले खुली बैठक अवश्य रखें, जिसमें जिम्मेदारियाँ स्पष्ट बाँटी जाएँ और संभावित समस्या-स्थलों पर चर्चा हो। खर्च और निर्णय पारदर्शिता के साथ साझा किए जाएँ ताकि शंका न रहे। आयोजन से बाद समिति समीक्षा करे, सभी सहयोगियों का धन्यवाद दे और संक्षिप्त रिपोर्ट/हिसाब समाज के साथ साझा करे।
हमारे दोहरे दायित्व हैं — आलोचक को सुझाव देते समय केवल दोष न गिनाना चाहिए बल्कि व्यावहारिक सुधार भी सुझाने चाहिए; वहीं आयोजक को आलोचना को व्यक्तिगत मानकर न लेना चाहिए, बल्कि उसे सीख की तरह अपनाकर आगे के आयोजनों में सुधार लागू करना चाहिए। संवाद, धैर्य और पारस्परिक सम्मान से ही आयोजन समाज को जोड़ने का माध्यम बनेंगे, तोड़ने का नहीं।
- पहले से तय प्रक्रिया: लिखित कार्य-विभाजन और समय-सीमा रखें।
- पारदर्शिता: खर्च और निर्णय सार्वजनिक करें।
- शिकायत-प्रणाली: सुझाव/शिकायत दर्ज करने का सरल तरीका रखें।
- पोस्ट-रिव्यू: आयोजन के बाद समीक्षा बैठक और रिपोर्ट साझा करें।
- कृतज्ञता: स्वयंसेवकों और दाताओं का सार्वजनिक धन्यवाद करें।