सहस्त्रबाहु अर्जुन: इतिहास और लोकगाथाओं का समन्वित स्वरूप

सहस्त्रबाहु अर्जुन, जिन्हें सहस्त्रार्जुन और कार्तवीर्य अर्जुन भी कहा जाता है, भारतीय इतिहास और पुराणों में एक अद्वितीय स्थान रखते हैं। वे न केवल एक शक्तिशाली राजा थे, बल्कि उनकी गाथा धर्म, शक्ति, अहंकार, क्षमा और प्रतिशोध की भी कहानी है। यह पुस्तक उनके जीवन, उपलब्धियों, संघर्षों और उनसे जुड़े पौराणिक प्रसंगों का समग्र चित्र प्रस्तुत करती है।







अध्याय 7: लोक परंपरा में सहस्त्रबाहु
भारत के अनेक क्षेत्रों में सहस्त्रबाहु अर्जुन को कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है। विशेषकर कुछ राजवंशों, क्षत्रिय, कलवार कलाल, कलार और यादवों की शाखाओं में उनका स्मरण बल, समर्पण और साहस के प्रतीक के रूप में होता है। अनेक मंदिरों और लोकगीतों में आज भी उनकी गाथा जीवित है।

सहस्रबाहु अर्जुन की पहचान: नाम और उनके कारण

नामकारण / उपाधि
कार्तवीर्य अर्जुनपिता कृतवीर्य के कारण
सहस्रबाहु / सहस्रार्जुनएक हजार हाथों के वरदान से
हैहय वंशाधिपतिहैहय वंश के महान राजा
माहिष्मति नरेशमाहिष्मति (अब महेश्वर) के राजा
सप्त द्वीपेश्वरसात महाद्वीपों के विजेता
दशग्रीवजयीरावण को पराजित किया
राज-राजेश्वरराजाओं के अधिपति
  1. सहस्रबाहु अर्जुन का इतिहास
    राजा कार्तवीर्य अर्जुन प्राचीन हैहय वंश के एक महान सम्राट थे, जिनका उल्लेख महाभारत और पुराणों में मिलता है।
    वह माहिष्मति नगरी (वर्तमान महेश्वर, मध्यप्रदेश) के शासक थे। यह नगर नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। उन्होंने यह नगर कार्कोटक नाग को हराकर बसाया था।

  1. सहस्रबाहु की राजधानी – माहिष्मति
    वर्तमान में जिसे महेश्वर कहा जाता है, वही पुरानी माहिष्मति नगरी है। यह नगर सहस्रबाहु जी की प्रशासनिक, धार्मिक और सांस्कृतिक राजधानी था।

  1. धार्मिक दृष्टिकोण: सहस्रबाहु और शिव भक्ति
    राजराजेश्वर मंदिर में आज भी सहस्रबाहु जी की देवतुल्य पूजा होती है।
    मंदिर में देसी घी के ग्यारह नंदा दीपक युगों से अखंड रूप से प्रज्वलित हैं।
    उनकी शिव-भक्ति और धर्मनिष्ठा का यह जीवंत प्रतीक है।

  1. सहस्रबाहु की समाधि
    मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग ही सहस्रबाहु अर्जुन जी की समाधि मानी जाती है।
    मत्स्य पुराण, अध्याय 43, श्लोक 52 में उनकी महिमा का वर्णन मिलता है:
    “यस्तस्य कीर्तेनाम कल्यमुत्थाय मानवः…”
    (भावार्थ) – जो मनुष्य प्रातः काल श्री कार्तवीर्य अर्जुन का स्मरण करता है, उसके धन का कभी नाश नहीं होता और आत्मा पवित्र हो स्वर्गलोक में सम्मान पाती है।

  1. सहस्रबाहु जयंती और लोक परंपरा
    महेश्वर नगर में प्रतिवर्ष अगहन माह की शुक्ल सप्तमी को सहस्रबाहु जयंती मनाई जाती है।
    यह तीन दिवसीय पर्व होता है, जिसका समापन भंडारा और भक्ति आयोजनों से होता है।
    पुराणों के अनुसार, यह पर्व कार्तिक शुक्ल सप्तमी को भी मनाया जाता है — विशेषतः दीपावली के बाद।
    यह दिन क्षत्रिय धर्म, न्याय और वीरता की भावना को पुनर्जीवित करता है।

  1. भक्ति-पंक्तियाँ (भजन रूप में)
    जिस भक्त का सर झुके , सहस्रबाहु के आगे !!
    सारी दुनिया झुकती है , उस इंसान के आगे !!
    सुबह-शाम भजन कर ले , मुक्ति का यतन कर ले !!
    छूट जायेगा जन्म-मरण , सहस्रबाहु का सुमिरन कर ले !!
    अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक, राजा धीराज योगीराज
    परब्रह्म श्री सचिदानंद सद्गुरु
    सहस्रार्जुन महाराज की जय !!
    ॐ सहस्रबाहवे नमः।
    ॐ जय जय कार्तवीर्यार्जुनाय नमः।

  1. लोकमान्यता और आज का संदर्भ
    भारत के कई राज्यों — मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात आदि — में आज भी सहस्रबाहु जी की पूजा, कथा व्रत, मेले आदि प्रचलित हैं।
    उनकी कथा वीरता, न्यायप्रियता और धर्म की प्रेरणा आज भी देती है।

📘 परिशिष्ट 1: वंशावली तालिका — हेहय से कालचुरी तक

पीढ़ी क्रमांकवंशज का नामटिप्पणी / पहचान
1यदुयदुवंश की प्रारंभिक शाखा
2सहस्त्रजित्यदु के पुत्र
3हैहयसहस्त्रजित् के वंशज; हेहय वंश की स्थापना
4धर्मनेमिहैहय का पुत्र
5कृतवीर्यधर्मनेमि का पुत्र
6कार्तवीर्य अर्जुनकृतवीर्य के पुत्र; सहस्त्रबाहु
7–14विभिन्न वंशजनाम अस्पष्ट, लोक परंपराओं में विविधता
15+कालचुरी वंश (छत्तीसगढ़, मध्य भारत)हेहय वंश की उत्तरकालीन शाखा मानी जाती है
16+चेदि और त्रिपुरी नरेशकालचुरियों की विस्तारित शाखाएं

🔍 विशेष: कालचुरी वंश का उत्थान 6वीं शताब्दी से होता है और यह 13वीं शताब्दी तक सक्रिय रहा।


📚 परिशिष्ट 3: संदर्भ ग्रंथों की सूची

📜 संस्कृत स्रोत:

  • महाभारत (शांतिपर्व, अनुशासन पर्व)
  • वायु पुराण
  • मत्स्य पुराण (अध्याय 43, श्लोक 52)
  • भागवत पुराण (9वाँ स्कंध)
  • हरिवंश पुराण
  • पद्म पुराण

📖 आधुनिक शोध और इतिहासकार:

  • डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल – “हिंदू पॉलिटी” में हेहय वंश का उल्लेख
  • ए. एल. बाशम – “The Wonder That Was India”
  • Romila Thapar – “Early India” में पौराणिक पात्रों की ऐतिहासिकता
  • D. C. Sircar – पुरालेखीय प्रमाणों की व्याख्या
  • R. K. Sharma – कालचुरी वंश और उनका उत्तर भारत में प्रभाव

परिशिष्ट 4: संभावित कालरेखा (Timeline)

कालखंडघटनाएँ
लगभग 2500–2000 BCEयदु वंश की प्रारंभिक शाखाएँ (पुराणों के अनुसार)
लगभग 1500–1200 BCEहेहय वंश का उदय – माहिष्मती की स्थापना
लगभग 1200 BCEकृतवीर्य और सहस्रबाहु अर्जुन का काल
1100–1000 BCEपरशुराम द्वारा क्षत्रियों का संहार (पौराणिक संदर्भ)
1000–800 BCEहेहय वंश की उत्तर-पीढ़ियाँ
6वीं शताब्दी CEकालचुरी वंश का पुनरुत्थान – छत्तीसगढ़, मध्य भारत
10वीं–13वीं शताब्दीकालचुरी (त्रिपुरी/रतनपुर शाखाएँ) चरम पर

यह कालरेखा पौराणिक वर्णनों और कुछ ऐतिहासिक अनुमानों पर आधारित है।

संपादक Manoj Kumar Shah

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