यह कथा बलदाऊ या बलराम जी से संपर्क रखती है, जिन्होंने गोवर्धन पर्वत के प्रत्येक दिन ऊंचाई बढ़ने से रोका।
गोवर्धन पर्वत पहले सब से ऊंचा पर्वत था और रोज रोज ऊंचा होते जा रहा था, इसके ऊंचाई से भयभीत हो कर सभी देवताओं ने भगवान बलभद्र जी से अनुनय विनय किया कि वे अपने पराक्रम और बल से इस पहाड़ को बढ़ने से रोकें । बलदाऊ जी देवताओं की प्रार्थना को मान गए और अपने हथेली को पर्वत के चट्टान पर रख कर जोरों से दबा दिया । तब से गिरिराज गोवर्धन का बढ़ना रुक गया । उनके हथेली के निशान आज भी पर्वत पर हैं।